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________________ -२३७ ] कुण्टन होलि आदिकं लेख ४ (ष) म (म) रित जतु पाइलालगमाने ततु वोसं प्रति रूभा २ किराडse गाडं प्रति रू १ वण - ५ जारकै धर्माय प्रदत्तं | लोपकस्य जतु पापं गोहत्यासहस्त्रेण ब्रह्महत्यासतेन पापेन लिप्यते सः ॥ ३७१ [ यह लेख संवत् १२०२ मे चाहमान राजा रायपालके राज्यमें लिखा गया था। इसमें नदूलडागिका के महावीर मन्दिरमें आये हुए साधुओंके लिए ठ० राजदेव द्वारा कुछ दान दिये जानेका निर्देश है । ] [ ए० ई० ११ पृ० ४२ ] २३६ कुण्टन होसल्लि ( जि० धारवाड, मैसूर ) राज्यवर्ष १० = सन् ११४८, कन्नड बसवण्ण मन्दिर के समीप शिलापर [ यह लेख खराब हुआ है । चालुक्य सम्राट् जगदेकमल्लके समय दसवें वर्ष, प्रभव संवत्सरमे यह लिखा गया था । नागिसेट्टि द्वारा किसी जैन देवताको कुछ जमीन दान दिये जानेका इसमें निर्देश है । कदम्बवंशीय तैल मण्डलेश तथा आचलदेवीका भी इसमें उल्लेख ] (रि० इ० ए० १९५०-५१ क्र० ६८ ) २३७ नीरलगि ( धारवाड, मैसुर ) राज्यवर्ष १० = सन् १९४८, कन्नड [ यह लेख चालुक्य राजा जगदेकमल्लके राज्यवर्ष १० मे पुष्य शु० १३, गुरुवार, उत्तरायण संक्रान्तिके दिनका है । इसमें नेरिलगेके नाल्प्रभु मलगावण्ड द्वारा स्वनिर्मित मल्लिनाथ - जिनालयके लिए कुछ भूमि मूलसंघ
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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