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________________ -२३२ ] नाइलाईका लेख [ उक्त लेख संवत् ११९५ मे चाहमान राजा रायपालके लिखा गया था । इसमें नदूलडागिकाके नेमिनाथमंदिर के लिए ठा० द्वारा कुछ दान दिये जानेका निर्देश है ] २३२ नाङलाई (जि. देसूरी, राजस्थान ) संवत् १२०० = सन् ११४४, संस्कृत - नागरी 1 १६९ राज्य में राजदेव [ ए० ई० ११ पृ० ३६ ] | संच (तु) । १२०० जेष्ट (सु) दि ५ गुरौ श्रीमहाराजाधिराज - श्रीरायपाल देवराज्ये - हास - २ समये रथयात्रायां आगतेन रा० राजदेवेन आत्म-पाइलामध्यात् ( सर्व साउत पुत्र ) विंसो ३ पको दत्तः । आत्मीय घाणकतेलच (ल) मध्यात् । मातानिमित्तं पलिकाद्वयं । प्ली २ दत्तः ॥ म ४. हाजनप्रमीण । जनपदसमक्षाय । धर्माय निमित्तं विसोपको १ पलिकाद्वयं दत्तं ॥ गोह - ५ स्थानां सहस्रेण ब्रह्महत्यासतेन च । स्त्रीहत्याभ्रणहत्या च जतु पापं तेन पापेन लिप्यते सः ॥ [ यह लेख संवत् १२०० मे राजा रायपालके राज्यमे लिखा गया था । यात्रा के लिए आये हुए रा० राजदेव द्वारा कुछ दान दिये जानेका इसमे निर्देश है । ] [ ए० ई० ११ पृ० ४१ ] २३३ कम्बदहल्लि ( मैसूर ) सन् ११४५, कन्नड [ इस लेख में होयसल राजा नरसिंह के दो दण्डनायक मरियाने तथा
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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