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________________ १६० जनशिलालेख-संग्रह [-२१९ २ देव तस्य पुत्रो रुद्रपालअमृतपा (लो) ताभ्यां माता श्रीराज्ञी मा ___ (न) लदेवी तया (नदू) ल (डा) गिका३ यां सतां परजतीनां (रा)ज कुलपल (म) ध्यात् पलिकाद्वयं घाण (क) प्रति धर्माय प्रदत्त । मं० वार्गास४ वप्रमुखसमस्त ग्रामीणक । रा० तिमटा वि० सिरिया वणिक पोसरि । लक्ष्मण एतं सा । ५ खिं कृत्वा दत्तं । लोपकस्य यदु पापं गोहत्यासरसण। ब्रह्म हत्यासतेन च । तेन ६ पापेन लिप्यते सः ॥ श्री॥ [ यह लेख संवत् ११८९ मे चाहमान राजा रायपालके राज्यमे लिखा गया था। इसके दो पुत्र थे--रुद्रपाल तथा अमृतपाल । इनकी माता मानलदेवीने नदूलडागिका आनेवाले यतियोके लिए कुछ दान दिया था। [ ए० ई० ११ पृ० ३४] २१६ तिरुनिङकोण्डै ( मद्रास ) सन् ११३४, तमिल [ यह लेख परकेसरिवर्मन् विक्रम चोल राजाके १६वें वर्ष मे लिखा गया था। इसमें वैगाशि मासमें उत्सवोंके अवसरपर अरुमोलिदेव (अर्हत) तथा नित्यकल्याण देवकी पालकी-यात्राकी व्यवस्थाके लिए मलैयन् मल्लन् अर्थात् विक्रमचोलमल्लन-द्वारा कुछ भूमि दान दिये जानेका उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९३९-४० क्र० ३१० पृ० ६६ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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