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________________ -२१८] बहुरीबंदका लेख १५९ २१७ बहुरीबंद (जि० जबलपुर, मध्यप्रदेश) १२वीं सदी-पूर्वाधं, संस्कृत-नागरी स्वस्ति"वदि ९ भौमे श्रीमद्गयाकर्णदेवविजयराज्ये राष्ट्रकूटकुलोद्मवमहासामंताधिपतिश्रीमद्गोल्हणदेवस्य प्रवर्धमानस्य ॥ श्रीमद्गोल्लापूर्वाम्नाये वेल्लप्रमाटिकायामुरुकृताम्नाये तर्कतार्किकचूडामणिश्रीमन्माधवनंदिनानुगृहीतः साधुश्रीसर्वधरः तस्य पुत्रः महामोजः धर्मदानाध्ययनरत: । तेनेदं कारितं रम्यं शांतिनाथस्य मंदिरं ॥ स्वलात्यमसंजकसूत्रधारः श्रेष्ठिनामा वितानं च महाश्वेतं निर्मितमतिसुंदरं ॥ श्रीचंद्रकराचार्याम्नायदंसीगणान्वये समस्त विद्याविनयानंदितविद्वजनाः प्रतिष्टाचार्यश्रीमत्सुभद्राश्चिरं जयंतु ॥ [ यह लेख कलचुरि राजा गयाकर्णके सामन्त राष्ट्रकूट गोल्हणदेवके राज्यकालमें लिखा गया है। वेल्लप्रभाटिका गाँवमें गोल्लापूर्व जातिका महाभोज नामक श्रावक था जो माधवनन्दिके शिष्य सर्वधरका पुत्र था । उसने शान्तिनाथका एक सुन्दर मन्दिर बनवाया। इस मन्दिरकी प्रतिष्ठा चन्द्रकराचार्याम्नाय-देशीगणके आचार्य सुभद्रके हाथों हुई थी।] [ इन्स्क्रिप्शन्स ऑफ दि कलचुरि-चेदि एरा पृ० ३०९ ] २१८ आदिनाथमन्दिर, नाडलाई ( जि० देसूरी, राजस्थान ) संवत् १९८९ = सन् ११३३, संस्कृत-नागरी १ ओं ॥ संवत् ११८९ माघसुदि पंचम्यां श्रीचाहमानान्धय श्री महाराजाधिराज ( रायपा) ल
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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