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________________ १५८ जैनशिलालेख-संग्रह [२१५रापिसेट्टिने कुछ दान दिया था। मूलसंघ-काणूरगण-मेषपाषाणगच्छके प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेवके शिष्य कुलचन्द्रपण्डित भद्ररायि सेट्टिके गुरु थे।] [ए० रि० मै० १९३० पृ. २४५ ] २१५ तिरुप्परुत्तिकुण्डम् ( चिंगलपेट, मद्रास) राज्यवर्ष १३ तथा १७ = सन् ११३१ तथा ११३५, तमिल [ यह लेख चोल राजा परकेसरिवर्मन् विक्रमचोलके राज्यवर्ष १३का है । इसमे विलशाको ग्रामसभा-द्वारा त्रैलोक्यनाथजिनमन्दिरके लिए कुछ भूमि करमुक्त रूपमे बेची जानेका उल्लेख है। इसीके बाद इसी राजाके १७वें वर्षमे तिरुप्परुत्तिकुण्डुकी कुछ भूमि आरम्बनन्दिको बेची जानेका भी उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९२८-२९ क्र० ३८१ पृ० ३७ ] २१६ लक्ष्मेश्वर ( मैसूर) सन् ११३२, कन्नड [ इस लेखमें गोग्गियबसदिके इन्द्रकीति पण्डितका उल्लेख है। उन्होंने तथा पेगडे मल्लियण्ण आदिने बसदिकी भूमिमे घर आदि बनवानेके कुछ नियम बनाये थे। हेमदेव-द्वारा बसदिके पुजारीको कुछ भूमि दान दी जानेका भी उल्लेख है। तिथि ज्येष्ठ पूर्णिमा, परिधावि संवत्सर, भूलोकवर्ष ( चालुक्यसम्राट् भूलोकमल्लका राज्यवर्ष ) ७, बुधवार इस प्रकार दो है।] [रि० सा० ए० १९३५-३६ क्र० ई० ४८ पृ० १६४ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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