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________________ -१९२] जबकि भादि के लेख जक्कलि (बिजापूर, मैसूर) चालुक्यविक्रमवर्ष ४१ =सन् १२१६, कार [ इस लेखमें चालुक्यविक्रमवर्ष ४१ में उत्तरायण संक्रान्तिके समय एक जैन मन्दिरके जीर्णोद्धारके लिए कुछ दानका उल्लेख है ।] [रि० सा० ए० १९२६-२७ क्र० ई० १९६ पृ० १७ ] २६२ कोल्हापुर ( महाराष्ट्र) शक १०३७ = सन् १११५, संस्कृत-कन्नड पहला पत्र १ स्वस्ति । जयस्याविष्कृतं विष्णोराहं क्षोमितार्णवं (1) दक्षि पोतदंष्ट्राग्रविश्रा२ न्तभुवनं वपुः ॥ (१) जयति जगति रूढो राजलक्ष्मीनिवासः प्रविजित रिपु३ वर्गस्वीकृतोत्कृष्टदुर्ग () सकलसुकृतवासो वीरलक्ष्मीविलासो जनितसुजन४ रागः श्रीशिलाहारवंशः (॥२) श्रीमशिलाहारनरेन्द्रवंशे श्री कीर्तिकान्ताः कमनी५ यरूपाः (1) विख्यातशौर्या बहवो नृपेन्द्राः संपालयामासुरिमा ६ त्री (॥३) तवंशे नृपतिर्बभूव जतिगो गोमन्थदुर्गाधिपो मामः श्रीवनितापतिस्सु. • चरितो गंगस्य पेर्मानडेस्तस्याभूत्तनयः प्रतापनिलय (:) श्री. नायिमां
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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