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________________ जैनशिलालेख-संग्रह [१८९१५ श्री ॥ इदन आवन ओवं प्रतिपालिसिद १६ (क) विलेय कोई कोलगर्म १. गंगेय... [ इस लेखमें होयसल राजा विष्णुवर्धनकी रानी चन्तलदेवी-द्वारा तथा उसके बन्धु दुद्दमल्ल-द्वारा वीरकोंगाल्व जिनालयके लिए कावनहल्लि ग्राम दान दिये जानेका उल्लेख है । यह दान मूलसंघ-देसिगगणके मेघचन्द्रविद्यदेवके शिष्य प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेवको दिया गया था।] [ए० रि० मै० १९२७ पृ० १०३ ] १८६ अंकनाथपुर ( मैसूर ) १२वीं सदी-पूर्वार्ध, कन्नड [ इस लेखमे एक जिनमन्दिरके जीर्णोद्धारके लिए राजा दुद्दमल्ल-द्वारा हेण्णेगडंग नगरसे अय्बवल्लि ग्रामके दानका उल्लेख है। यह दान प्रभाचन्द्रदेवको दिया गया था । लिपि ११वीं सदीकी है।] [ए. रि० म० १९१३ पृ० ३३ ] १९० कण्णूर ( मैसूर ) चालुक्यवर्ष ३७ = सन् १९१२, कन्नड [ चालुक्यसम्राट विक्रमादित्य (षष्ठ ) के समय चालुक्यविक्रम वर्ष ३७ ( सन् १११२ ) में कालिदासदण्डनाथ-द्वारा कन्नदुरीके पार्श्वनाथबसदिके लिए कुछ भूमि दान दिये जानेका इस लेखमें निर्देश है। मलसंघदेशिगण- पुस्तकगच्छके आचार्य वर्धमानमुनिके प्रशिष्य तथा बालचन्द्रप्रतीके शिष्य अर्हणन्दिबेट्टददेवको यह दान दिया गया था।] [रि० आ० स० १९३०-३४ पृ० २४२ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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