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________________ जैनशिलालेख-संग्रह [१२१ तिरुनिडकोण्डै ( मद्रास ) ११वीं सदी पूर्वाध, तमिल [ इस लेखका कुछ भाग दीवालमें दबा है। इसके प्रारम्भमें राजेन्द्रचोल प्रथमकी ऐतिहासिक प्रशस्ति है। तिरुमणंजेरि निवासी कलिमानन् विजयालयमल्लन्-द्वारा देवमन्दिरमे दीप प्रज्वलित रखनेके लिए ९६ भेड़ें दान दी जानेका इसमें उल्लेख है। यह लेख चन्द्रनाथमन्दिरके बरामदेके बाजूमें खुदा है।] [रि० सा० ए० १९३९-४० क्र० ३०० पृ० ६५ ] १३० हूलि (जि० बेलगांव, म्हैसूर ) शक ९६६ तथा १०६७ = सन् १०४४ तथा ११४५, काड १-२ श्रीमत्परमगंमीरस्याद्वादामोघलांछन । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं ॥ (१) ३ स्वस्ति समस्तभुवनाश्रय श्रीपृथ्वीवल्लभ महाराजाधिराज पर मेश्वर परममहार४ कं सत्याश्रयकुलतिलकं चालुक्यामरणं श्रीमदाहवमल्लदेवर विजयराज्य५ मुत्तरोत्तराभिवृद्धिप्रवर्धमानमाचंद्रार्कतारं सलुत्तमिरे ॥ तपाद पद्मोपजीवि ॥ मेले६ द पगेवरं निर्मूलिसि जसमं निमिर्चि दिमित्तिवरं कालडिय बोलगडितले पालिसिदं तोंबता७ रुमं भुजबलदि । (२) आतन पुत्रं विनयोपेतं पायिम्म-नृपति गोप्युव सति
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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