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________________ -12.] डूलिका लेख ८ विख्यातियुते हम्मिकटवेगे सीतेगे सरि मागेणम्बे लच्छलेयोगे दरु ॥ (३) इष्टज ९ नक्के समय के महाजनभोजन क्केयुस्कृष्टतपोधन र्गेयलिदायब१० नक्के सकंन्यकालिकाग्निष्टगेगेय्दे नालकुसमयक्कनुरागदे बेगविं११ तु संतुष्टते लच्छियब्बरसिगार् सरियर् सचराचरोवियोलु ॥ (४) १२ सकलधरित्रियोलू नेगर्द बंदिजनं सले रूपिनेल गेयं प्रकटतेवेत दा१३ नगुणमं कुलदुनतियं जिनांघ्रिगल्गकुटिलचित्तमं पोगलुतिपुं१४ दु कुंडिय लिंकदंकपालकन कुलोत्तमांगनेयनयिये लच्छुक देवियं १५ जगं ॥ ( ५ ) शरनिधिमेखला वृतवसुंधरेयेंव बिलासिनीमुखांबुरुहदवोल विराजि १६ सुव बेल्वलनाल के पोदलद शोभेगागरमेनि (सि) पं पूलि तिलकाकृति सिंदेसे दिदा पुरं सुरपु १७ रमं कुबेरनलकापुरमं नगुगुं विलासदिं ॥ (६) अल्लि ॥ सकलव्याकरणार्थशा १८ स्वचयदोलु कायंगलोलु संद नाटकदोलु वर्ण कवित्व दोल्ने गर्द वेदांत गलोलु १९ पारमाथि (क) दोलु लौकि ( क ) दोलु समस्तकलेयोलु वागीशनिंद यशोधि २० करादर पोगल्वलिगारलवे पेलु सासिर्वर ख्यातियं ॥ ( ७ ) स्वस्ति शकनृपकालातीत संवत्सर २१ शतगलु ९६६ नेय तारणसंवत्सरद पुष्य सुद्ध १० श्रदिवारमुत्तरायण २२ संक्रान्तियंदु || यजनयाजनाध्ययनाध्यापनदानप्रतिग्रह षट्कर्मनिरतरुं श्री २३ (म) चालुक्य चक्रवर्तिब्रह्मपुरि स्थान पितृपितामहमहिमास्पदरक्षणा
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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