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________________ जैन शिलालेख-संग्रह [१११ कोनकोण्डल ( अनन्तपुर, आन्ध्र ) १०वीं सदी, कड़ [ यह लेख रसासिद्धलगुट्ट नामक पहाड़ीपर एक पाषाणपर खुदा है। यह श्रीनागसेनदेवका निसिदिलेख है। इसकी लिपि १०वों सदीकी है।] [रि० सा० ए० १९४०-४१ क्र० ४५१ पृ० १२६ ] मथुरा १०वीं सदी, संस्कृत-नागरी [ इस लेखमें १०वीं सदीकी लिपिमें मूलसंघके किसी आचार्यका उल्लेख है।] [रि० इ० ए० १९५२-५३ क्र० ५२७ पृ० ७७ ] कोलक्कुडि ( ज़ि० मदुरा, मद्रास ) १०वीं सदी, तमिल समणरमले पहाड़ीपर जैन मूर्तियोंके उत्तरकी ओर चट्टानपर [ इस लेखमे गुणभद्रदेव तथा चन्द्रप्रभका निर्देश है। लिपिके अनुसार यह लेख १०वीं सदीका होगा । ] [रि० इ० ए० १९५०-५१ क्र. २४२] वैखर ( मन्दसौर, मध्यप्रदेश) १०वीं सदी, संस्कृत-नागरी [ इस लेखमें नन्दियडसंघके जैन आचार्य शुभकीति तथा विमलकीतिका उल्लेख है । लिपि १०वीं सदीकी है। ] [रि० इ० ए० १९५४-५५ क्र० २०३ पृ० ४५ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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