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________________ १२३ ,' . १. श्रुतकीतिः-जैन धर्म के श्राश्रयदाता कदम्बों के सेनापति श्रुतकीर्ति और उसके वंशजों की भक्ति उल्लेखनीय है। ये लोग यापनीय संघ के प्राचार्यों के भक्त थे। पलाशिका ( हल्सी ) और देवगिरि से प्राप्त लेखों में इस वंश का चरित चित्रित है। ले० नं०६६ से विदित होता है कि श्रतकीर्ति सेनापति ने अपने कल्याण के लिए बदोवर क्षेत्र को अर्हन्तों के लिए दे दिया था जो कि उसने अपने स्वामी कदम्ब काकुस्थ्यवर्मा से खेटक ग्राम में प्राप्त किया था । लेख नं० १०० में इसके गुणों की प्रशंसा है और इसे भोजवंश का या भोजक लिखा 'है । वह काकुस्थ्यवर्मा का विशेष कृपापात्र था । उक्त लेख के अनुसार काकुस्थ्य वर्मा के बेटे शान्तिवर्मा के पुत्र मृगेश ने श्रुतकीर्ति की पत्नी एवं दामकीर्ति की मां को खेटग्राम धर्मार्थ दे दिया था। उसी लेख में लिखा है उस दामकीर्ति का ज्येष्ठ पुत्र जयकीर्ति था जिसके गुरु प्राचार्य बन्धुषेण थे। उसने अपने माता पिता के पुण्यार्थ खेटक ग्राम को यापनीय संघ के प्राचार्य कुमारदत्त को दे दिया था । ले० नं. १०१ में दामकीर्ति के छोटे भाई का नाम श्रीकीर्ति था जो कि अपने कुल के अनुरूप धर्मात्मा था। ले० नं०६७ और ६६ में दामकीर्ति का उल्लेख है जिनसे ज्ञात होता है कि वह कदम्ब शान्तिवर्मा की धार्मिक प्रवृत्तियों का प्रेरक था । उन दिनों पलाशिका (हल्सी ) यापनीय संघ का केन्द्र था और श्रुतकीति के वंशज उक्त संघ के अनुयायी थे। २. चामुण्डरायः--इसका प्रिय नाम 'राय' भी था। इतना शूरवीर, इतना दृढ़ भक्त एवं इतना स्वामिभक्त मंत्री कर्नाटक के इतिहास में दूसरा और कोई नहीं दिखाता । उसके समय के अनेकों लेखों और उसकी कन्नड भाषा में कृति चामुण्डराय पुराण से उसके जीवन का परिचय मिलता है। ले० नं० १६५ (प्रथम भाग, नं० १०६ ) से ज्ञात होता है कि वह ब्रह्मक्षत्र कुल में पैदा हुआ था । वहाँ उसे 'ब्रह्मक्षत्रकुलोदयाचलशिरोभूषामणि' कहा गया है। यह गंग नरेश राचमल्ल चतुर्थ का सेनापति था पर मालुम होता है कि वह उसके पिता मारसिंह तृतीय के समय भी सेनापति था। मारसिंह के विषय में लिखा जा चुका है कि वह उस वंश का बड़ा प्रतापी नरेश था। वह राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण तृतीय
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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