SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२२ महामण्डलेश्वर सालुवेन्द्र के पिता का नाम संगिराय था तथा अनुब का नाम कुमार इन्दगरस वोडेयर था। इन्दगरस का दूसरा नाम इम्मडि सालुवेन्द्र या जो कि अपनी शूर वीरता के लिए प्रसिद्ध था (६५६)। वह बैनधर्म का मक्त श और उसने विदिरू में वर्धमान स्वामी की पूजा के निमित्त दान की व्यवस्था की थी। श्रागे इस वंश के सालुव मल्लिराय, सालुव देवराय, सालुव कृष्णराय के नाम मिलते हैं जिन्होंने जैनधर्म को संरक्षण प्रदान किया था। सालुव कृष्णराय, सालुव देवराय की बहिन पद्माम्बा का पुत्र था । ले० नं० ६६७ से ज्ञात होता है कि ये तीनों शासक प्रसिद्ध जैन वादी विद्यानन्द मुनि के भक्त थे। सालुव मल्लिराय और देवराय के दरबारों में उक्त मुनि ने अनेकों प्रतिवादियों को परास्त किया था। ले० नं. ६७४ में तीनों राजाओं के पूर्वजों का परिचय तथा एक दूसरे के सम्बन्ध का परिचय दिया गया है। वहाँ उन्हें क्षेमपुर का शासक भी कहा गया है। ५. जैन सेनापति एवं मन्त्रिगण इन लेखों पर दृष्टिपात करने से यह निश्चय रूप से मालुम होता है कि दक्षिण भारत में जैन धर्म ने अपना व्यावहारिक रूप अच्छी तरह पा लिया था। जैन सन्तों के उपदेश से न केवल व्रत नियमादि पालन कर अन्त में समाधि से देहोत्सर्ग करने वाले व्यक्ति ही प्रभावित थे बल्कि विशाल सेनाओं के नायक दण्डाधिपति एवं राज्यसंचालक मंत्रिगण भी प्रभावित हुए थे। अहिंसा का सन्देश केवल उनकी श्रद्धा का विषय न था, वह तो देश की प्रगति में बाधक होने की जगह साधक था। उसके बिना चाहे धार्मिक क्षेत्र हो या राजनीतिक, स्वतन्त्रता संभव न थी। इन लेखों में अनेकों वीर सेनानियों की अमर कहानियाँ भरी पड़ी हैं। उनमें से प्रमुख कुछ का संक्षिप्त परिचय यहाँ प्रस्तुत किया जाता है।
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy