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________________ १०६ 3 द्वितीय का पिता था । लेख नं० २७८१ में नृपकाम होयसल का जैन सेनापति गंगराज के पिता एचि के संरक्षक के रूप में उल्लेख है । लेख नं० १७८ के आधार पर कुछ इतिहास इस नरेश का समय सन् १०२२ या १०४० ( १ ) के लगभग निर्धारित करते हैं, तदनुसार इसका दूसरा नाम राचमल्ल पेम्मनिडि था जो कि गंगवाडी के मुनियों में प्रसिद्ध था । इसके गुरु द्रविड़संघ के वज्रपाणि ने सोसवूर (ड) में अपना जीवन व्यतीत कर अन्त में संन्यासपूर्वक देह त्यागा था । नृपकाम का पुत्र विनयादित्य द्वितीय हुआ जिसने सन् १०४० - ११०० के लगभग शासन किया । लेख नं० २६० से ज्ञात होता है कि इसके गुरु शान्तिदेव थे, जिनकी चरणसेवा से उसे राज्यलक्ष्मी प्राप्त हुई थी। लेख नं० २८६४ में उल्लेख है कि उसने अनेक तालाब एवं जैन मन्दिर बनवाये थे । लेख नं० १२५ से ज्ञात होता है कि विनयादित्य के राज्यकाल में अङ्गति में मकर जिनालय नाम से एक प्रसिद्ध चैत्यालय था । ले० नं० २०० के अनुसार उक्त नरेश के गुरु शान्तिदेव सन् १०६२ ई० में दिवंगत हुए थे। उक्त अवसर पर उस नरेश ने और सभी नगरवासियों ने मिलकर उनकी स्मृति में एक स्मारक बनवाया था। यह नरेश चालुक्य नृप विक्रमादित्य पृष्ठ का सामन्त था । उसका बेटा एरेयङ्ग (त्रिभुवनमल्ल) सोमेश्वर तृतीय भूलोकमल्ल चालुक्य का सामन्त था ( २१८ ) । ले० नं० ४०३५ और ३६३ में उसे चालुक्य नरेश का बलद ( दक्षिण ) भुजादण्ड कहा गया है । ले० नं० ३४८ में कई पद्यों द्वारा इसकी सामरिक वीरता की प्रशंसा १. जै० शि० सं० प्रथम भाग लेख नं० ४४ २. रावर्ट सेवल, हिस्टोरिकल इन्स्क्रिप्सन्स ग्राफ सदर्न इण्डिया, पृष्ठ ३५१ ३. जै० शि० सं० प्रथम भाग, ले० नं० ५४. ४. वही - ले० नं० ५.३. ५. वही ले० नं० १२४. ६. वही - ले० नं० १३७ ( ? ) ----
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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