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________________ ६६ इसी तरह लेख नं० ७०२ में पश्चिम भारत के बलात्कार गण सरस्वती गच्छ कुन्दकुन्दान्वय की भट्टारक परम्परा दी गई है जो इस प्रकार है-सकलकीर्ति, भुवनकीर्ति, तानभूषण, विजयकीर्ति, शुभचंद्र, सुमतिकीर्ति, गुणकीर्ति, वादिभूषण, समकीर्ति तथा पद्मनन्दि । काष्ठा संघ काष्ठासंघ की उत्पत्ति के सम्बन्ध में अनेक विवाद हैं । दसवीं शताब्दी में देवसेनाचार्यकृत दर्शनसार ग्रन्थ में लिखा है कि दक्षिण प्रांत में आचार्य जिनसेन के सतीर्थ्य विनयसेन के शिष्य कुमारसेन ने उत्तर पुराण के रचयिता गुणभद्र के दिवंगत ( संवत् ६५३ ) होने के पश्चात् काष्ठासंघ की स्थापना की थी, पर यह उल्लेख कालक्रम आदि अनेक दृष्टियों से युक्तियुक्त नहीं प्रतीत होता है ' । १७ वीं शताब्दी के एक ग्रन्थ वचनकोश में इस संघ की उत्पत्ति के सम्बन्ध में लिखा है कि उमास्वामी के पट्टाधिकारी लोहाचार्य ने इस संघ की स्थापना उत्तर भारत के अमरोहा नगर में की थी। इस कथन में सचाई जो हो पर १६-२० वीं शताब्दी के लेखों में काष्ठासंघ के अन्तर्गत लोहाचार्य अन्वय का उल्लेख मिलता है । प्रस्तुत संग्रह के एक लेख नं० ७५६ ( सं० १८८१ ) में यही बात हम पाते हैं । इस संग्रह में इस संघ से सम्बन्धित सभी लेख उत्तर और पश्चिम भारत से ही प्राप्त हुए हैं । लेख नं० ६३३ और ६४० में इसका नाम काञ्चीसंघ लिखा है, जो कि माथुरान्वय ( मयूरान्वय) एवं पुष्करगण के साथ होने से लगता है कि यह काष्ठासंघ का ही अपर नाम होना चाहिए । इस संघ के प्रमुख गच्छ या शाखायें चार थीं: - नन्दितट, माथुर, बागड़ और लाटवागड़ । ये चारों नाम बहुतकर स्थानों और प्रदेशों के नामों पर रखे गये हैं । नन्दितट से संबन्धित एक ले० नं०११६ इस संग्रह के प्रथम भाग में हैं जिसमें कि नन्दितट को भूलकर मण्डिततट लिखा गया है । संभव है इस गच्छ का संबन्ध दक्षिण से था । माथुर गच्छ जैन साहित्य और इतिहास, पृष्ठ २७७ ( द्वि० सं० ) 1
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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