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________________ 1 या अन्य से संबन्धित ६ लेख प्रस्तुत संग्रह में हैं। प्रथा से प्राप्त लेख नं० ३०५ क में यद्यपि काष्ठासंघ का उल्लेख नहीं है फिर भी उसके प्रसिद्ध श्रन्वय माथुरान्वय का निर्देश है और लेख से इस संघ के एक श्राचार्य छत्रसेन का नया नाम मालूम होता है । लेख नं० ५८६ में मसार से प्राप्त तीन प्रतिमालेखों में इस संघ के प्राचार्य कमलकीर्ति का नाम देकर एक लेख में उन्हें माथुरान्वय का लिखा है। ग्वालियर से प्राप्त दो लेख नं० ६३३ और ६४० में तोमरवंशीय नरेश डूंगरसिंह और उसके पुत्र कीर्तिसिंह ( १५ वीं शता० ) के समय इस संघ के कतिपय प्रतिष्ठित भट्टारकों के नाम मिलते हैं । लेख नं० ६३३ में भट्टा ० गुणकोर्ति और उनके शिष्य यशःकोर्ति का उल्लेख है, साथ में प्रतिष्ठाचार्य श्री पण्डित रद्दधू का भी । भट्टा० यशःकोर्ति वे ही हैं जिन्होंने अपभ्रंश भाषा में पाण्डवपुराण ( वि० सं० १४६७) र हरिवंशपुराण ( वि० सं० १५०० ) की रचना की थी । अपभ्रंश चंदप्पहचरिउ भी इनकी रचना है । इन्होंने प्रसिद्ध कवि स्वयम्भू के हरिवंशपुराण की जीर्ण-शीर्ण खण्डित प्रति का समुद्धार भी किया था । ये गुणकीर्ति भट्टारक के अनुज तथा शिष्य भी थे । प्रतिष्ठाचार्य रधू, प्रसिद्ध कवि रधू ही हैं जिन्होंने बीसों ग्रन्थों की रचना की थी । ये महान् कवि होने के साथ साथ भट्टारकीय पण्डित थे, प्रतिष्ठा आदि में भाग लेते थे इसलिए प्रतिष्ठाचार्य कहलाते थे । ग्वालियर से प्राप्त ले ० नं० ६४० में और वात्रा गंज से प्राप्त लेख नं० ६४३ में इस संघ के कुछ दूसरे भट्टारकों के नाम गुरुपरम्परा पूर्वक मिलते हैं, वे हैंक्षेमकीर्ति, हेमकीर्ति, विमलकीर्ति ( ६४० ) तथा क्षेमकीर्ति, हेमकीर्ति, कमलकीर्ति एवं रत्नकीर्ति ( ६४३ ) । संभव है इन दोनों लेखों के भट्टारक एक परम्परा से सम्बन्धित थे और लेख नं० ६३३ की परम्परा से जुदे थे, क्योंकि ज्ञानार्णव की लेखक- प्रशस्ति से मालुम होता है कि उक्त लेख के भट्टारक यश:कीर्ति के बाद उनकी गद्दी पर उनके शिष्य मलय कीर्ति और प्रशिष्य गुरणभद्र भट्टारक हुए थे । ले० नं० ६४३ में भट्टारक रत्नकीर्ति को मण्डलाचार्य लिखा १. जैन साहित्य और इतिहास, पृष्ठ ५.३५. ( प्रथम संस्करण ) 1
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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