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________________ कुप्पके लेख आगि आदव ई-धर्मके अळुपिंदरे तिरुपति-श्रीरज-विष्ण-कञ्चिलि स्वामि-सेवे अळिद पापके होहरु इष्टर बळिक अपिदरे एळनेनरकक्के इळिवरु इदु तप्पदु ( शेषमें साक्षियोंके नाम हैं ) पाण्ड्यप्प-चोडेरु कोप्पद-बस्तिगे धारेनेरडु मुदुकदानीलु गद्दे भूमि २ क्के गडि ख १. उलिगददेन्दु नरसोपुरद महाजनङ्गळ कय्य कयक्के कोण्ड कागलु-गोडलु कले ख १८ कारु १२ उभ ख ३० ... ४० भट्ट पारिश्वनाथ-देवर वोळ-भागस्तरादवरिंगे ... ... ( हमेशाके अन्तिम श्लोक) [(उक्त मितिको) करिदलके मयिल-नायककी पत्नी तळार-दुग्गम्मके पुत्र पाण्ड्य-नायक और उसके छोटे भाई देरे-नायकने कोप्पमें साधन-चैत्यालय बनवाकर और उसमें प्रतिमा विराजमान करके, पूजनके लिये निम्नलिखित सम्पत्ति दान में दी । ( बो जमीन दी उसकी यहाँ विस्तृत चर्चा है )। और भयिररस-वोडेयरने पारिश्वनाथ-देवके लिए कोप्पको लगानमेंसे निम्नलिखित जमीन दानमें दी । ( जहाँ जमीनकी कीमत दी हुई है )। लिंगवन्त और नामधारियोंके विरुद्ध भिन्न शाप । साक्षी। पाण्ड्यप्प-वोडेरने मुदकदानिमें कोप्पकी बस्तिके लिये ( उक्त ) और भी दान दिया तथा नरसीपुरके ब्राह्मणोसे खरीदकर कुछ और जमीन भी दान में दी।] [ EC, VII, koppa ti. No 50 ] ६८६ वेणर:-संस्कृत तथा काद। [ शक सं० १९२५ - १६०४ ई.] [गोमटेश-मूर्तिस्तम्भके ठीक दाहिनी तरफ ] श्रीमत्परमगंभीरस्याद्वादामोघलाञ्छनम् । बीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शास [२] जिनशासनम् ॥ [१]
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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