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________________ ५५६ जैन-शिलालेख-संग्रह शकवर्षेष्वतीते[षु विषयाधिशदुषु । व [तमा] ने शोभकृति वत्सरे फाल्गुना [ख्यके ॥ ] [२] मासेऽथ शुक्लपक्षेद्धदशम्यां गु [रुपु ] प्यके । सुलग्ने मिथुने देशी [ गणांब ] र दिनेशितुः [1] [३|| ] बेळगुळाख्यपुरीपट्टक्षी [ २ ] iबुधिनिशापतेः । चारुकी]ि मु [ ने ] दिव्यवाक्यादेनूरपत्तने ॥ [ ४॥] श्री रायकुवरस्याथ जामाता त [ सहो ] दरी-। पाण्ड्यकाख्यमहादेव्याः [ सु] पुत्रः पांड्यभूपतेः ॥ [1] अ [नु ] न [स्ति मरा [जा]ख्यश्चामुंडान्वय भूष]कः । अस्था [प] यत्प्रति [ष्टाप्य] भुजबल्याख्यकं जिनं ॥ ६ ॥ शुभमस्तु ॥ [ इस लेखमें बताया गया है कि चामुण्ड ( प्रसिद्ध चामुण्डराज जिन्होंने श्रवण-बेल्गोळामें गोम्मटेशकी मूर्ति स्थापित की है ) के वंशमें होनेवाले विम्म. राजने पनूर (वर्तमान वेणूर ) में भुजबली (बाहुबली ) जिनकी प्रतिमाकी प्रतिष्ठा करके स्थापना की। यह तिम्मराज पाण्ड्य नरेशका छोटा भाई, पाण्डयक रानीका पुत्र, तथा रायकुवरका जामाता था। उसने इस मूतिकी स्थापना बेल्गुळ (वर्तमान श्रवण-बेल्गोला ) के भट्टारक, बो देशोगणके थे, को आज्ञासे की थी। मूर्तिको स्थापना दिवप्त शक वर्ष शोमकद १५२५ के व्यतीत हो बानेपर फाल्गुन शुक्ला १०, पुष्यनक्षत्र, मिथुन लग्न था। [ EC, VII, No 14, F.]
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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