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________________ ૪ जैन - शिलालेख संग्रह ६८७ सिरोही ; - संस्कृत | [ सं० १६५३ = १२६६ ई० ] श्वेताम्बर लेख । [ H. H. Wilson, Asiat. Res., XVI, p. 316, No. XLIII, a.) ६८८ कोप्प - संस्कृत तथा कन्नड़ । [ शक १५२१= १५६३ ई० ] [ कोप्प ( कोप्प परगना में ) पश्चिमकी तरफ खाली पड़ो हुई जमीनमें एक पाषाणपर ] श्री - वीतरागाय नमः । श्रीमत्परम-गंभीर-स्याद्वादामोघ लाञ्छनम् । बीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं निन - शासनम् || नमस्तुङ्ग इत्यादि ॥ स्वस्ति श्री जयाभ्युदय - शालिवाहन शक वरुष १५२१ सन्द वर्तमानविलम्बि - संवत्सरद चैत्र ब ७ चन्द्रवारदलु श्रीमतु दिल- बळिय मयिल-नायकर मदवळगे तळार वळिय दुग्गमन मग पांड्य-नायक अवर तम्म देरेनायकरु को पदल्लि पलित-साधन चैत्यालयवनु कट्टिसि प्रतिष्ठेय माडिसि अमृतपडिगे बिट्ट स्वास्ति-विवर ( यहाँ दानकी विस्तृत चर्चा है ) भयिररस-वोडेयारु पारिश्वनाथ देवरिगे आ कोप्प आयदलि धारेनेरद क्षेत्रभूमिय बिबर ( यहाँ विशेष चर्चा आती है ) लिंगवन्तनादव अळुदिदरे श्रीपर्वतदलि लिङ्ग नङ्ग पापके होह विभूति - रुद्राक्षिगे होरगु नामधारि ...
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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