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________________ दामनन्दि पूर्णचन्द्र I दामणन्दि I श्रीधर I मलधारिदेव (एलाचार्य) चन्द्रकीर्ति I दिवाकरणन्दि 赋 जयकीर्ति ( चान्द्रायणीदेव) शुभचन्द्र (सन् १९०१३ में स्वर्गवास ले० नं० २३२ ) T कुक्कुटासन मलधारि ( गण्डविमुक्त ) 1 शुभचन्द्र (सन् १९२३ में स्वर्गवास, लेख नं० २८५, प्र० भा० ४३ ) बलि है जिसके श्राचार्य ५७१ आदि ) । इस इस गण की एक और शाखा का नाम इंगुलेश्वर गण प्राय: कोल्हापुर के श्रास पास रहते थे ( ४११ एवं से सम्बन्धित अनेकों लेख ( ४११, ४६५, ५१४, ५२१, ५२४, ५२८, ५७१, ५८४, ५ε६, ६००, ६२५ और ६७३ ) हैं पर इन लेखों से इस गण की ठीक गुरुपरम्परा नहीं दी जा सकती । १२-१३ वीं शताब्दी के लेखों में माघनन्दि श्राचार्य का नाम प्रथम दिया गया है ( ४१९, ४६५, ५१४ आदि ) । १४ बी१५ वीं शताब्दी लेखों में श्रभयचन्द्र और उसके शिष्य श्रुतमुनि का नाम शा जाता है तथा १६ वीं शताब्दी के लेखों में चारुकीर्ति का नाम ।
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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