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________________ Re लेख ४७८ में इस गए की एक बाणद बलिय का नाम दिया गया है । इस गण का प्रसिद्ध एवं प्रमुख गच्छ पुस्तक गच्छ है। जिसका कि उल्लेख अधिकांश लेखों में है। इसी गच्छ का दूसरा नाम वक्रगच्छ है ( २५६, प्रथम भा० ५५ और ४२६ ) । नन्दिगणः -- मूलसंघ, कोण्ड कुन्दावय, देशियगण, पुस्तक गच्छ से सम्बन्धित तथा सन् १९११५ से ११७६ ई० के बीच के श्रवणवेल्गोल से प्राप्त लेख नं० २५५ (४७) २८५ (४३) ३३२ (५०) ३६२ (४०) और ३८८ (४२) में श्राचार्यो की कई पट्टावलियां दी गई हैं। इनमें बीच या श्रन्त में प्राचार्यों के साथ मूलसंघ देशियगण आदि लिखा है पर आदि में दो चार मंगलाचरण के श्लोकों के बाद केवल नन्दिगण का उल्लेख कर एक सामान्य परम्परा दी गई है जो इस प्रकार है: पद्मनन्दि ( कोण्डकुन्द ) उनके अन्य में | उमास्वाति ( युद्धपिच्छ ) | बलाकपिच्छ 1 गुणनन्दि } देवेन्द्र सैद्धान्तिक कलधौतनन्दि लेख नं० ३६२ की थोड़ी विशेषता यह है कि बलाकपिच्छ के बाद समन्तभद्र, देवमन्दि ( पूज्यपाद ) और अकलंक का नाम दिया गया है। इनमें गुणानन्दि,
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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