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________________ ३९८ जैन-शिलालेख-संग्रह [गे] नरकूडदु जैन-समयके सलुबुदेन्दु ... ... ... ... वृद्धिपाद ( बायीं ओर ) श्री-वैष्णव-समय ................ यी-मर्यादे ... ... ... ... ... ओळगुळ बस्ति - श्री-वैष्णव ... ... ... ... नेटु कोट्टेवु ( बाकी का पढ़े बाने लायक नहीं है) रामानुज की स्तुति । ( उक्त मितिको), विस समय महामण्डलेश्वर वीर-बुक-राय पृथ्वीपर राज्य कर रहे थे :-जैनों और भक्तों (वैष्णवों ) में कोई विवादका विषय उपस्थित होने पर आनेयगोन्दि, होसपट्टण पेनुगोण्डे और कल्यह,' इन नाडोंके जैनोंने दुक-रायको इस बातका प्रार्थनापत्र देकर कि १८ नाडांके --वैष्णवोंके हाथोंसे जैन लोग अन्यायसे मारे जा रहे है,-महारायने (यह घोषणा करते हुए कि) "हम तुम्हारे वैष्णव दर्शनमें बाधक नहीं होंगे" निम्न हुक्म दिया :-कलश इत्यादि पांच बस्तियोंमें पांच महा वाच बच सकते हैं। और में वे नहीं बनाये ना सकते | वे जैन समय (या समऊ ) की है। श्री-वैष्णव समय, बो बढ़ गया है ... ... ... ... (बाकीका अधिकांश अपठनीय है )]। [ Eo, IX, Magadi tl., No 18] ५६७ पचिगनहलिए। मिति ( नम्बालगूर प्रदेश) में, पीके पास, मेमिवाय. बस्तिके उत्तर एक पावाण पर] श्रीमत्परमगम्मीरस्थादादामोघलाञ्छनं । जीयात्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् ॥१॥ ..जहाँ यह शिकावेस है, वहाँ बक्या मते हैं।
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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