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________________ श्रवणबेलगोलाके लेख ५६५ श्रवणबेलगोला - कचद । [ शक १२६०=१३६८ ई०] ५६६ कल्य; - संस्कृत तथा कन्नड़ । [ शक १२४० = १३६८ ई० ] [ कक्ष्य (सातनूर परगना) में, चिकण्णके खेवमें एक पायावर ] स्वस्ति समस्त प्रशस्ति-सहितम् पाषण्ड- सागर महा-बडबा - मुखाग्नि ओरङ्ग-राज-चरणाम्बुज-मूल-दासः । श्री - विष्णु लोक-मणि-मण्डप - मार्ग- दायी रामानुजो विजयते यति-राज-राजः ॥ ... ३६७ [ जै० शि० सं०, प्र० भा० ] शक वर्ष १२६० नेय कालिक संवत्सरद श्रावण-शु २ सो-चलु श्रीमन्महामण्डलेश्वरं अरि-राय-विबाद भाषेगे तप्पुव रायर गण्ड श्री-वीरबुक - रायनु पृतु ( थु ) वी राज्यवनाळुव कालदलि जैनरिंगे भक्तरिगे संवादवादक्षि आनेयगोन्दि- होसपट्टण- पेनगोण्डे-कळ्यहोळगाद समस्त - नाड जैनरु बुकगयङ्गे भक्तरु अन्यायदलु कोल्लुवदनु विन्नहं माडलागि कोविल तिरुमले पेरूमाळ्कोविलु- । तिरुनारायणपुर - मुख्यवाद सकलाचार्य्यं सकळ - समर्थगछु सकळ - सात्विक मोष्टिकरु तिरिर्माण- तिरुविडि तन्दवरु नाळ्वत्तेष्टु-तले-मकळु सावन्त - बोवर्कलु तिरुकुल- जाम्बवकुल- वोळगाद पदिनेष्टु-नाडा-भी-वैष्णवर कय्यलु महारायनु निम्म वैष्णव- दसनद मषेवोकेरुवेन्दु कोड-सम्बन्ध पञ्च- बस्तिगळलि कळस जगळे-जगटे-मोदलाद पञ्च महा-वाद्यऊ सलुऊटु अन्यरि
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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