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________________ जैन - शिलालेख संग्रह बिस समय पेरुमाल - देवरस शान्तिसे सुखपूर्वक राज्य कर रहे थे, उस समय उन्होंने ‘त्रिजगन्मङ्गलम्' नामके चैत्यालयका निर्माण कराया, और माणिक्य-देवको प्रतिष्ठित किया; साथ ही हुल्लनहल्लि के प्राचीन मन्दिर 'परमेश्वर चैत्यालय' का भी बीर्णोद्धार किया, तथा दोनों चैत्यालयों में विधिवत् सतत पूजा चालू रहे, इसके लिये भूमिदान किया । 1 अन्तमें इन मन्दिरोंकी रक्षा तथा उनसे लगी हुई भूमिका जो गुणवान् आदमी रक्षण करेगा उसके लिए निरन्तर सुखकी मङ्गल कामना की गई है । ] ५७२ श्रवणबेलगोला - संस्कृत भग्न । शक १२६२ = १३७२ ई० } • [जै० शि० सं० प्र० भा० ] ४०६ ५७३ श्रवणबेलगोला -- कचड़ [ बिना कालनिर्देशका ] [ जै० शि० सं०, प्र० मा० 1 Ga हिरे - आवलि; — कश्शद । [ शक १२१८ = १३७६ ई० ] 1 [ हिरे-महिमें, ध्वस्त जिन-वस्तिके सामनेके छठे पाषाण पर ] स्वस्ति भीमतु शक वरुप १२९८ नळ -संवत्सरद आश्विन शु १२ गु श्रीमन्नाळ्व-महा-प्रभु आवलिय चन्द गौण्डन मग बेचि गौण्डनु रामचन्द्र
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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