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________________ 404 चिक-मार्गाटके लेख चिक्क-मागड, अग्न । [ संभवतः कगभग १२२६ ई० ] [ चिक-मागडिमें, बस्ति के पास के पाषाणपर ] ५०२ स्वस्ति श्रीमतु यादव - नारायण भुजबल - प्रताप चक्रवतिं श्रो-कन्दार देवन ११ नेय बल संवत्सरद त्र - बहुळ- अमवासे-बजुवारदन्दु मुडिय सा... "वन्त सन्यसन- समाधियं माडि सुगति प्राप्तनादं मङ्गळ महा श्री श्री गज सैलेन्दु-शशांक कार्त्तिक कृष्ण पक्षमेने हिमना प्रपष्ट देवर गुड्डनेसेव शान्त मनदोळु ता पञ्च-पदवं चिन्तिसुत्त परिवारं बन्धु - जनमुमाश्रित- जनमुं निलेदेखसं शनिवार उत्तरायण स ... ... ...... ... ... ... ... ... मरमु नवरनु सामन्त ... पुरुष-निघाननं सकळ - भोगियनाश्रित कल्प वृक्षनम् । नर- सुर- धेनु वन्दि- सुर-भूज नवीन- मनोज-रूपन / गुरु-पद-भक्ति ळू प्रभाव-साबन्त मुब्बन वो देन करुणि विघात्रमूल पद- लोभिगळिं ... ... ... ... ३५१ ... स्वर्ग-न 'आप्त-जनं शरणिमदेन्दु··· बुतिहरु । मु ( बाकीका मिट गया है ) । भुखबल- प्रताप - चक्रवर्त्ति कन्दार-देवके ११वें [ स्वस्ति । यादव- नारायण वर्ष में, मुडिके सा ••• 'वन्तने, 'सन्यसन' महोत्सव की (विधि) को करते हुए, सुखी हालत प्राप्त की । उसकी और भी प्रशंसा । ( शिलालेख बहुत घिसा हुआ है । ] 1 [ EC, VII, Shikarpar tl., No. 198 ]
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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