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________________ जैन - शिलालेख संग्रह [ वह शिलास बहुत-कुछ बिसा हुआ है । ) जिन - शासनकी प्रशंसा । बम्बूद्वीप, भरतक्षेत्र और कर्णाटक विषयको प्रशंसा २५२ बहुत राष्ट्रों का स्वामी, लङ्केश्वर, यादववंशीय राजा रामचन्द्र थे । उसकी उत्पत्ति । जयसिंह नामके कोई राजा थे। उनके पश्चात् [ कन्दर राय ] और उसका भाई महदेव था । कन्दर रायका पुत्र रामदेव हुआ । 1 तत्पादपद्मपचीवी कूचि-राम था, और राजगुरु बिन मट्टारक-देव थे। उनकी उत्पत्ति । वीरसेन और जिनसेनाचार्यकी परम्परामें १ गुण-भद्र-योगी और जिन - सेन-योगी हुए। इसके बाद महसेनके पुत्र मुनि पद्मसेन यतिपकी प्रशंसा. आती है । उक्त मुनीश्वरके चरणोंका भक्त कूचि-राम था। उसकी उत्पत्ति | वह सिं [ह] देव और झाम्बिकाका पुत्र था, उसका छोटा भाई चट्ट था, पत्नी मा ( या. लक्ष्मी ) थी। उसकी पत्नी लक्ष्मीदेवीकी प्रशंसा । उसका पुत्र वोणदेव था, जो चमसेन मुनिके चरणोंका भक्त था । • पापा- देश मध्यमें स्थित बेतूर की प्रशंसा । माचिके पुत्र हरिप-गौड, माकडे पुत्र योग-गौड, तथा सोमके पुत्र राम - गौडका उल्लेख और पब उस कूचि - राजको बेतूर तथा दूसरे गाँवोंका घेरा मिल गया, और म उसकी श्री स्वस्थ हो गयी, पद्मसेन भट्टारककी सम्मतिसे, उसने लक्ष्मीजिनालय खड़ा किया। और कूचने यह मन्दिर भी मूलसंघके सेनगणके पोगलेछको दे दिया । - कूचि-रामने ( उक्त मितिको ) वीर- महदेव-शयके शुभ हस्तोंसे अग्रहारके रूपमें, लक्ष्मी बिनालयके लिये, हुणिसेयइति प्राप्त करके तथा १२ होन्नुपर काम करनेवाला एक श्रोत्रिय सदाके लिये नियत कर, उसे पद्मसेन - महारक -देवके पाद-प्रचालन पूर्वक, उस जिनालयके पार्श्वनाथ देवके लिये एक शासन (लेख) द्वारा सौंप दिया । तथा, गौढ लोगोंके साथ-साथ चलकर, उठने एक दुकान तथा सुपारीका एक बगीचा भी दिया । [EC, XI, Davangere tl., No 13]
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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