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________________ जैन-शिलालेख-संग्रह [वर्ष आनन्द = १२५५ ई. १ (लू. राइस)।] [पमावती मन्दिरके प्राणमें, पाषाणपर] भी-मूलसंघ-देशी-गणद ... ... दु-विष-देवर गुड्ड ... ... ... जननी बालचन्द्र-देवर गुड्डि व्रत-शील-गुण-सम्पन्ने सोयि-देवि आनन्द-संवत्सरद पुष्य मास-पाळ-पशमि-बुधवारदन्दु समाधि विषियिं मुडिपि सुर-लोकव सूरे गोण्डळु माता कामाम्बिका श्रीमान् .." माघवाहयः । पुत्री सोमाम्बिका तस्याः सोयि-देवी ... ज .. || कवित्वे गमकिल्वे च वादित्वे वाग्मिता-जये । विष-वासचन्द्रस्य सहक्षो नास्ति नास्ति हि ॥ मङ्गळ मा श्री [श्री-मूलसंघ और देशो-गण के ... दु-विद्य-देवके गृहस्थ शिष्य ... की मां, बालचन्द्र-देवकी गृहस्थ-शिष्या सोयि-देवि, ( उत मितिको ), समाधिकी विपिसे मर गयी और स्वर्गलोकको प्राप्त हुई। उसकी माँ कामाम्बिका थी, पिता माषव, तथा पुत्री सोमाम्बिका थी। कवित्वमें, गमकित्वमें, वादित्वमें, वाग्मिता तथा वयमें त्रैविद्य-बाळचन्द्रके समान दुनियाँमें कोई नहीं है, कोई नहीं है । ' [ EC, VIII, Nagar tl., No. 53.3 श्रवणवेल्गोला-काद। [वर्ष नक= १२१५ ई० (ब. राइस.) जै०शि० सं०, प्र. मा०]
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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