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________________ सोर के लेख मनमत्- प्रतिकृतिनिम् । तनु सु-तदिं धनं जिनेन्द्रालयसञ्- । जनन - क्रियेविन्दति - पा । बनमागिरे नेमि-सेटिट नेगळ्दं जगदोळ् ॥ ३०५ अन्तु नेमि- सेट्टि सक-वर्षद [ साविरद ] नूर मूवतेमेय विभव-संवत्सरद जेष्ठ शु १० शुक्रवारदोळ शान्तिनाथ देवर प्रतिष्ठेयं माळूप कालदोळ् कीर्त्ति गावुण्डनं तत्तनून तनळिय महादेव - दण्डनापकनुं, परिवृत मागिरलु देवरष्ट - विधाचर्च्चनेगं ऋषियराहारदानकं कोट्ट गद्दे कम्म ५० वरद-श्री कण्ठ-प्रति- । परिक्किदर् शान्ति- [ जि ] न-गृहाचार्य्यग्गप्- | इरे योग-पगेयना - 1 दरदिन्दं वज्रपञ्जरमनिक्कुववोलु ॥ यिदु बोग- वट्टिगेयनान्- । तुदु मद्-धर्म्मन् दलेन्द-संख्यात-गणा- । त्युदित-यश र प्रतिपालिप- । रुदात्तदी - शान्तिनाथ - जन-मन्दिरमम् ॥ [ जिन शासन की प्रशंसा । लम्बूद्वीप, उसमें भरतक्षेत्र, उसमें कुन्तण देश, उसमें बनवास - देश | जिस समय उस तथा समुद्र- परिवेष्टित अन्य देशों का अधिपति यदुकुलके सळको यह मुख्य क्षेत्र देना चाहता था, सुदत्त मुनिपने पद्मावतीको एक चीतके रूपमें प्रकट करवाया । पद्मावतीको चीतेके रूपमें देखते ही, उन्होंने सलसे - • कहा 'पोय् सल' ( सल, मारो ); जिसपर उसने चीतेको सल ( डण्डे से ) मारा और देवी पद्मावतीको उसके साहसका प्रदर्शन कराया, और इससे राजाका नाम 'पोरस' पड़ गया । २०
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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