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________________ जैन-शिलालेख-संग्रह इस तरह सुदत्ताचार्यके पोयसळ राज्यकी नीवं गेरनेके बाद उस वंशमें बहुत-से राधा क्रमशः हुए। जिनके बाद रावा बल्लाळ उत्पन्न हुआ, उसकी कीर्तिकी प्रशंखा। विस समय बल्लाळ-देव दोरसमुद्रके निवास स्थानमें था और सुखसे राज्य कर रहा था: कोडर्माण क्षेत्रका वर्णन । उसका अधिपति मसन था। पुत्र, (प्रशंसा सहित ), कोर्षि-गावुण्ड था। उसके पुत्र मोम, मसन, महादेव और राम थे। उसका दामाद महादेव दण्डनाय था; ( उसकी प्रशंसाएँ )। मल्ल-सेट्टि और माचाम्बिकेसे नेम अपन हुआ था, जिसके गुरु मूलसंध तया काणर-गण के गुणचन्द्र थे। नुन्न-वंशके नेमि-सेटिने बिळिगे-नाई तथा एडे-नाड़ में कई बिनेन्द्र-भवन बनवाये थे। कोडकणिमें उसने शान्तिनाथजिनालय बनवाया था। इस प्रकार नेमि-सेटिने ( उक्त मिति को' ) शान्तिनाथ-देवकी प्रतिष्ठाके समय, कीर्ति-गावुण्ड, उसके पुत्र तथा दामाद महादेव-दण्डनायकसे परिवेष्टित होकर ५० दण्ड प्रमाण धान्य-क्षेत्र भगवानकी अष्टविध पूजाके लिए तथा अषियों के आहारके लिये दानमें दिया। और श्रीकण्ठ-बतिपने शान्ति-चिन मन्दिरके पुधारीको एक योग्य स्थान दिया। [EC, VIII, Sorab, tl., No. 28 ] 1-'शक-वर्षदनूर-पूववेनेय,' इसमें हजारकी हेल्या खुस है।
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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