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________________ जैन - शिलालेख - संग्रह उदयं-गेय्दनिला-तळ-स्तुत- महादेवं चमूपोत्तमम् || कवि - रिपु गुरु गुरु-रिपु भृगु -। ववरेवरेनल घरित्रि कवि-गुरु- बनतोद्भवमोदवे मन्त्र-गुणमोप्-। पुवुदु महादेव - दण्डनाथोचमनोळ् ॥ अन्तु कीर्त्ति - गावुण्डं तन्नळिय महादेव - दण्डाधिनाथनं तदपत्यरुं बेरसु || समलित-गुण-गुणगणं भी- । वल्लभनभिमान - मूर्त्ति कीर्त्ति वधू- धम्- । मिल-विराजित-मल्ली- । ३०४ फुल्लै श्रेष्ठि- प्रतान-मण्डन भल्लम् ॥ एने नेगळ्द मल्ले - सेटिंग । मनुपम - चरित्र - सीते माचाम्बिकेगम् । अनियिसिदं सुकृतं सञ्- । नियिसे निज - कुलके नेमनखळ - ललामम् ॥ नेगळ्दर् ग्गुरुगळ् गुणच्चन्- | -गणि-वक्षसंग (घ) काणूर-गगणदोळ । सोगयिसुव नुन्न- वंशदो- 1 सेवररागे नेमन भिजन - रामन् ॥ • पर-हित- मूर्त्ति भव्य-जन- कळप-कुजं विभु नेमि-सेहि बिन् तरदोळे कूडे जिड बळिगे - नाड एडे-नाडे निसिप्प नाळू गबोळ् । परम - जिनेन्द्र गेहमन ने कमनुद्ध रिसुतमित्तलुद्- | धरिदिनुत्तरोत्तरमेनलू निज- कीर्त्ति - लता - वितानमम् ॥ कोड कणि-पुर- लक्ष्मिय मेय्- । दोडवेनिसिरे नेमि-सेट्टि विभु माडिसिदम् । कडु - गोवि कीर्त्ति-लते दाङ- । गुडि विडुविने शान्तिनाथ - जिन-मन्दिरमन् ॥
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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