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________________ था। जिसका कि दूसरा नाम उक्त वंश के लेखों में दोरसमुद्र या द्वारावती मिलता है। प्रस्तुत संग्रह में इस स्थान का पुराना लेख सन् १९१७ के लगभग का (२६३ ) है जो कि विष्णुवर्धन नृप के समय का है। इसमें जैन मंत्री गंगराज के कार्यों को बड़ी प्रशंसा है । सन् ११३३ के ले. नं० ३.१ में विष्णुवर्धन की दिग्विजय का, तथा साथ में सेनापति गंगराज द्वारा अगणित जैन मन्दिरों के जीर्णोद्धार कार्यों का उल्लेख है । गंगराज के पुत्र बोप्प ने दोर समुद्र में पार्श्वनाय बसदि का निर्माण कराया था और अपने पिता की स्मृति में पार्श्वनाथ की मूर्ति स्थापित की थी। राजा विष्णुवर्धन को दैवयोग से इसी अवसर पर युद्ध विजय, पुत्रोत्पत्ति और सुख समृद्धि मिली थी। उसने इस मांगलिक स्थापन को ही उक्त बातों में निमित्त मान बड़ी प्रसन्नता से देवता का नाम विजयपार्श्व एवं पुत्र का नाम विजय नारसिंह देव रखा और जावगल नामक गाँव तथा अन्य प्रकार के दान दिये । उक्त लेख से यह भी मालुम होता है कि मन्दिर के पुरोहित नयकीर्ति सिद्धान्तदेव को तेली दास गौंड ने भूमिदान दिया तथा उसने और राम गौण्ड ने उत्तरायण संक्रमण में बहुत से दान दिए । सन् ११६६ के एक लेख (४२६ ) में यहाँ की शान्तिनाथ बसदि के लिए कुछ किसानों द्वारा गाँव एवं तालाबों के दान का तथा वसदि के प्राचार्य, स्थानीय किसान वर्ग, एवं गाँव के १० कुटुम्बों द्वारा दान की रक्षा का उल्लेख है। ले० नं० ४६६ के अन्तर्गत दो लेखों का संकलन हुआ है । पहले लेख में होय्सल नरसिंह तृतीय द्वारा जीणोद्धार कार्य का तथा दूसरे में उक्त राजा द्वारा अपने उपनयन संस्कार के समय दान का उल्लेख है । सन् १२७४ के एक लेख ( ५१४ ) में बालचन्द्र पण्डित देब के चमत्कार पूर्ण समाधि मरण का वर्णन है। उनके स्मारक रूप में भव्य लोगों ने उनको तया पंच परमेश्वर की प्रतिमायें बनाकर प्रतिष्ठित की थीं। इसी तरह ले० नं० ५२४ ( सन् १२७६ ) में उक्त बालचन्द्र पण्डितदेव के श्रुतगुरु अभयचन्द्र महासैद्धान्तिक के समाधिमरण का उल्लेख है । ये अभयचन्द्र अनेक शास्त्रों के प्रकाण्ड पण्डित थे। इसी तरह इस लेख के २० वर्ष बाद बालचन्द्र पण्डित देव के प्रधान शिष्य रामचन्द्र मलधारि देव के समाधिमरण
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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