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________________ १६४ पतिदेव को सौंप दी गई थी। इसी तरह ले० नं० ३६७ (सन् ११६४ ) में उल्लेख है कि यहाँ एक बसदि पट्टणसामि नागसेट्टि के पुत्र ने बनवायी थी जिसके लिए सन् १९६४ में वीर विजय नरसिंह देव ने दान दिया था । सन् ११७२ के एक लेख (३७८) में एक होन्नंगिय बसदि के लिए किसी कम्बरस नामक व्यक्ति द्वारा दान का उल्लेख है। 1 ( बन्दा लिके:- : - इस स्थान की तीर्थ रूप में प्राचीनता यहाँ से प्राप्त सन् ६१८ ( ठीक ६११ ) के एक लेख १४० ) से विदित होती है जहाँ इसे बन्दनिके तीर्थ रूप में लिखा है। उक्त सन् में नागर खण्ड सत्तर की शासिका जक्कियब्बे ने सल्लेखना पूर्वक देहत्याग किया था । सन् १०७५ के एक लेख (२०७ ) में भी इसका तीर्थ के रूप में उल्लेख है। वहाँ शान्तिनाथ बसदि के लिए चालुक्य नृप सोमेश्वर ने कुछ भूमि दान में दी थी। ले० नं० ४०८ से ज्ञात होता है कि कदम्ब वंश की एक शाखा की अधीनता में इस स्थान की कीर्ति एवं यहां के शान्तिनाथ जिनालय की प्रसिद्धि जगह जगह फैल रही थी । इसी लेख के अनुसार एक बार यहां के जिनालय को देखने होय्सल सेनापति रेचरण श्राया था । उसने इस मन्दिर के दर्शन से प्रसन्न होकर पूजा के खर्च के लिए एक गाँव दान में दिया था। इसी शान्तिनाथ जिनालय में सन् १२०० के लगभग सोमलदेवी नामक महिला ने समाधि मरण किया था ( ४३३ ) ले० नं० ४३८ के अनुसार उक्त बसदि के लिए तीन गाँव दान में दिये गये थे । ले० नं० ४४८ में बन्दालिके ( बान्धव नगर ) की समृद्धि एवं सौन्दर्य का अच्छा वर्णन है । यहाँ एक सेट्टि ने शान्तिनाथ देव के किया था । ललितकीर्ति सिद्धान्त के शिष्य शुभचन्द्र प्रबन्ध ( पारुपस्य ) अपने हाथ लेकर उसे सत्तर के सभी प्रमुख व्यक्तियों ने, प्रजा ने, 1 लिए एक मण्डप खड़ा पण्डित ने इस तीर्थ का समुन्नत किया था और किसानों ने एवं नागर खण्ड अनेक दान दिये उक्त जिनालय के थे और होम्सल सेनापति मझ ने उक्त क्षेत्र की रक्षा की थी। प्रवन्धक शुभचन्द्र देव ने सन् १२१३ में सम्यासपूर्वक देहत्याग किया था (४५९ ) ।
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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