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________________ १६३ राजा की वंशावली दी गई है। इस सबसे यही मालुम होता है कि बल्लिगाम्बे ११-१२ वीं शताब्दी के प्रमुख जैन केन्द्रों में एक था । कुप्पटूर:- के सम्बन्ध में संगृहीत कतिपय लेखों से ज्ञात होता है कि यह स्थान ११ वीं से १५ वीं शताब्दी तक एक महत्त्वपूर्ण जैन केन्द्र था । ले० नं० २०६ से विदित होता है कि कदम्ब राशी मलाल देवी ने सन् १०७७ में पार्श्वदेव चैत्यालय की स्थापना की थी और पद्मनन्दि भट्टारक ने उसकी प्रतिष्ठा करा के उसका नाम वहां के ब्राह्मणों के नाम पर 'ब्रह्म निनालय' रखा था । यहीं देशी गण के श्राचार्य देवचन्द्र के शिष्य श्रुत मुनि थे जिन्होंने एक मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया था, और सन् १३६७ में समाधिगत हुए थे ( ५६३ ) । ले० नं० ५५५ से विदित होता है कि सन् १४०२ में कुप्पटूर एक प्रसिद्ध स्थान था । विजय नगर के सम्राट् हरिहर के समय यहां एक जैन मन्दिर था, जिसमें कदम्बों का एक शासन पत्र मिला था । सन् १४०८ के ले० नं० ६०५ से विदित होता है कि कुप्पटूर नागर खण्ड का तिलक स्वरूप था वहां अनेक जैन रहते थे, तथा अनेक जैन चैत्यालय थे । वहां का शासक जैन धर्मावलम्बी गोपमहाप्रभु था । I अङ्गड:ड: -- यह होय्सल वंश का उत्पत्ति स्थान था । इसका दूसरा नाम सोसेबूर था । १० वीं शताब्दी के मध्य से इसके जैन केन्द्र होने के अनेक प्रमाण मिलते हैं । ले० नं० १६६ से ज्ञात होता है कि यहां द्रविड़ संघ के प्रसिद्ध मुनि विमलचन्द्र पण्डित देव थे जिन्होंने सन् ६६० में लगभग संन्यास विधि से मरण किया था और उनकी शिष्याओं ने इस उपलक्ष्य में स्मारक खड़ा किया था । इसी तरह ले० नं० १७८ वज्रपाणि मुनि के समाधिमरण का स्मारक है । ये वज्रपाणि होय्सल नरेश नृपकाय राच मल्ल के गुरु थे । ले० नं० १६४, २०० २४२ भी समाधिमरण के स्मारक हैं । ले० नं० १८५ से मालुम होता है कि ये वज्रपाणिमुनि सूरस्थ गण के थे। उनकी शिष्या जाकियब्बे ने कुछ जमीनें वहां के मकर जिनालय के लिए छोड़ दी थीं। इस लेख के समय विनयादित्य होम्सल का राज्य प्रवर्तमान था । ले० नं० २०१ में पाषाणशिल्पियों के प्रधान, माणिक होम्सलाचारि द्वारा निर्मित एक बसदि का उल्लेख है । यह बसदि मुल्लूर के गुणसेन
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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