SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गावपास- नाडौम का बैन पौहान राजा, बलिराम का पुत्र बबणहिल्लका अग्रज, बाहित का पिता-११वींतीनगर. .१७.1 १. नाडीस का जन धर्मावलम्बी चौहान गरेम, बम्हनदेव चौहान (११६१-६२६०)का पिता- अहमदेव स्वयं बोर अधिक उत्साही न था, उसने मादरा में एक विशाल महावीर-जिनालय बनवाया था, बहुतसी सम्पत्ति दान करदी थी, और अन्त में दीमा मेकर जैन मुनि बन गया था। बश्वराव का एक दान शासन १९१०६.का है। [प्रमुख. २०८; कंच.२०] २. गुजरात के बोलो के मन्त्री वस्तुपाल-तेजपाल का पिताल. १२०..। [कंच. २१४-२१६] काशिदेशस्थ वाराणसी के उरगवंशी नरेण, २३वें तीर्थकर पार्वनाप (६० पू० ८७७-७७७) के पिता ।। मौद्गलीपुत्र पुष्पक की धर्मात्मा भार्या, जिसने है. सन के प्रारंभ के लगभग मथुरा में एक जिन-प्रासाद निर्माण कराया था। [शिसं.ii.८६% प्रमुख.६९] अश्विनी- ती. महावीर के साक्षात परमभक्त श्रावस्ती के सेठ नन्दिनीपिता की धर्मात्मा पस्ति। [प्रमुख. २३] अष्टोपवासिगन्ति (कम्ति)- श्रीनन्दि पण्डितदेव की शिष्या मायिका, जो शम-दम-यम-नियमयुक्त विमल परित्र वाली और जिनधर्म के संरक्षण में सदेव प्रसन्न रहने वाली साध्वी थी, जिन्हें स्वगुरु से, १०७६ ई. में बजतटाक के पार्वजिनालय के संरक्षण, शास्त्र. लेखकों (लिपिकारों) के निर्वाह, आदि धार्मिक कार्यों के लिए भूमिदान मिला था। इस माध्वी को बहधा आठ-आठ उपवास रखने के कारण 'अष्टोपवासि' विरुव प्राप्त हुआ था। [देसाई. १४४:णिसं 1-२१०। प्रमुख. १२१, ईए xvifi७३] अष्टोपबासि मुनि- १. तमिल देश के एक प्राचीन जैनाचार्य अरिट्टनेमि पेरि. यार के गुरु । इनके एक अन्य शिष्य माषनन्दि थे, जिनके शिष्य गुणसेन प्र०, प्रसिष्य वर्धमान, और प्रशिष्य गुणसेन दि. थे। [देसाई. ५७.६१; शिसं iv..१] २. मूलसंध-देशीगणपुस्तकगच्छ के मष्टोपवासि भटार, जिन्होंने १०५४ ६० में, बेहूरु में एक भव्य जिनालय निर्मापित किया था तिहासिक व्यक्तिकोष
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy