SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कवियत्री, कुरलकाव्य प्रणेता तिरुवल्लवर की भगिनी। [टंक.] -दे. नोवे। अशोक- प्रसिद्ध मौर्य सम्राट अशोक महान (ई०पू० २७३-२३४), अपर नाम अशोकचन्द्र, अशोकवर्षन, चण्डाशोक, प्रियदर्शी, आदि, विश्व के सार्वकालीन सर्वमहान नरेशों में परिगणित, सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य का पौत्र, सम्राट विन्दुसार अमित्रघात (इ. पू. २९८-२७३) का पुत्र एवं उत्तराधिकारी, राजधानी पाटलिपुत्र, कलिंग विजय (ई०पू० २६२) से हृदयपरिवर्तन, बौद्ध अनुतियों के अनुसार बौद्धधर्म का मर्वमहान समर्थक एवं प्रसारक. कुल परम्परा से जैन, जीवन के पूर्वार्ष में जैन हो रहा, उत्तरार्ध में बौद्ध भिक्षु उपगुप्त के प्रभाव से बौद्ध धर्म के प्रति विशेष झुकाव, वस्तुत: सर्वधर्म सहिष्णु, न्यायनीतिपरायण प्रजावत्सल नरेश, जनहित के अनेक कार्य किये, तत्कालीन विदेशी यूनानी राजाओं से भी मैत्री सम्बन्ध, अपने अनेक महत्त्वपूर्ण शिलालेखों, स्तंभलेखों आदि के लिये प्रसिद्ध, अहिंसाधर्म का प्रनिपालक। [भाइ. ९२. १००, प्रमुख. ४५.४८] अशोकचन-दे अशोक । अशोकवन-दे.अशोक । अश्वग्रीव- ९प्रतिनारायणों में से प्रथम प्रतिनागयण । अश्वपति- पद्मावती नगरी निवासी सुभट, जिनके पुत्र सङ्घल मुनिदीक्षा लेकर शंकर मुनि के नाम से प्रसिद्ध हुए और भद्रान्वयभूषण आचार्य गोशर्म के शिष्य थे, तथा जिन्होंने, गुप्त सं० १०६ अर्थात् सन ४२६ ई० में, विदिशा (म.प्र.) निकटस्थ उदयगिरि की गुहा मे पार्श्व प्रतिमा प्रतिष्ठित की थी। जैशिस.i-९१; इ. ए. xi, पृ० ३१० प्रमुख. १९९] भावपतेदिन- जिसका पुत्र बंगाल पर्यन्त राज्य करने वाला दिल्लीपुर का वह महम्मद सुरित्राण (सुल्तान) था, संभवतया जौनपुर का सुलतान महमूदशाह शर्की. जिसको राजसभा मे कर्णाटक के सिंहकोति मुनि ने (ल० १४५० ई० में) बौद्धादि अनेक बबन वादियों को पराजित किया था -यह उल्लेख वर्धमानमुनि रचित, ल. १५३० ई. (१५४१ ई.) की, विद्यानन्द-प्रशस्ति में है। [जैशिस iii. ६६७; भाइ. ४२७] ऐतिहासिक व्यक्तिकोष
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy