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________________ शिष्य और रविनन्दि के गुरुभाई थे। उनके परम्परामिष्य त्रिभुवनधन के ११३८ ई. के शि. ले. में यह गुरुपरम्परा प्राप्त है. अत: इन बईनन्दि का समय ल. ९५० १० है। [देसाई. २८१, २८२] ११. माधनन्दि सिद्धान्तचक्रवती को, १३वीं शती ई० के उत्तरार्ष में, दिये गये दानमासन में उल्लिखित उनके परम्परा गुरु, जो अमयनन्दि भट्टारक के शिष्य थे और देवचन्द्र के गुरु थे। [जैशिसं iv ३७६] मलन-- यूनानी सम्राट एवं विश्वविजेता सिकन्दरमहान (६.पूर्व०३२६) के नाम का संस्कृत रूपान्तर । १. अलाउद्दीन खलजी के समय गुजरात का सूबेदार, जिसने १३०४ ई. में, मीराते-अहमदी के अनुसार, अन्हिलवाड के जिनमंदिरों को तोड़कर उनके संगमरमर के स्तंभों से वहां की जामामस्जिद बनवाई थी। [टक.; बम्बई गजेटियर.i,१,प.२०५] २. औरंगजेब के समय फ़तेहपुर का सूबेदार था, जिसके दीवान ताराचन्द जैन थे। [प्रमुख. २९७] अलवा.- या ब्रह्म अलवा, ईडर पट्ट के मूलसंधी भ. गुणकीर्ति के शिष्य, ने १५८.ई. में जिनमूर्ति प्रतिष्ठा की, या कराई, थी। [सिभा. vii, १, पृ. १२-१८] मलसकुमार महामुनि-श्रनणबेलगोलस्थ चन्द्रगिरि के एक शि.ले. में उल्लिखित। [शिसं. १७५] मलाउद्दीन खलजी-दिल्ली का सुल्तान (१२९६-१३१६ ई.), उसके समय में काष्ठासंघ-माथुरपच्छ-पुष्करगण के भ. माधवसेन ने दिल्ली में अपना पट्ट स्थापित किया था, सुल्तान के दरबार में राघो, चेतन आदि कई वादियों को शास्त्रार्थ में पराजित किया था, सुलतान से जैनों के हित में ३२ फरमान प्राप्त किये थे। उस समय दिग. चन अग्रवाल पूर्णचन्द्र दिल्ली का नगरसेठ था जो गिरनार के लिए एक विशाल यात्रासंघ ले गया था -उसी समय मजरात के प्रमुख स्वे, सेठ पेयडसाह भी संघ लेकर आये थे। इस सुलतान के ठक्करफेरु आदि कई जैन पदाधिकारी थे। कई अन्य जैनगुरु भी उसके द्वारा सम्मानित हुए बताये जाते हैं। [भाई. ४०९. ११, प्रमुख. २३९.४०] ऐतिहासिक व्यक्तिकोष
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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