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________________ तिरुकुरल के रचयिता तिरुवनबर के बाश्रयदाता या मुरु एलाचार्य का सिंहली नाम। दिग. अनुश्रुति उन्हें कुन्दकुन्दाबार्य से अभिन्न सूचित करती है, तमिल अनुश्रुति एक धनी बेष्ठि और सिंहली अनुश्रुति सिंहलद्वीप का एक चोलशासक (ई०पू० १४५. १०१) [मेज. २४०-२४१] मलाबदीन सुरत्राण- संभवतया गुजरात का सुलतान था, जिसके समय में १४६१ ई० में, दिग. जैन खण्डेलवाल प्राधिका ने दिल्लीपट्ट के भ. प. नंदि के शिष्य और मदनकीर्ति के शिष्य भ नेत्रनंदि के शिष्य ब्रह्म गल्ह को महाकवि सिंह के अपभ्रन्श प्रद्युम्नचरित्र को प्रति मेंट की थी। अलियमरस- कदम्बवंशी जैन राजा ने, ल० ८८९६० मे, कोपबल तीर्थ पर एक विशाल जिनालय बनवाकर धर्मोत्सव किया था और प्रभूत दान दिया था। [देसाई. ३९४; शिस. iv. ६.] अलियमारिसेट्रि- एक दिग. धर्मात्मा श्रेष्ठ, जो ल. ११८५ ई. के श्रवणबेलगोल के एक लेख में प्रमुख दानियों की सूची में उल्लिखित है। [शिसं . i. ८७] अलियादेवी धर्मात्मा जैन राजकुमारी, हुम्मचनरेश काम सान्तर और रानी बिज्जलदेवी की पुत्री, जगदेव एवं सिगिदेव की भगिनी, कदम्बनरेश होनेयरस को पत्नी, राजा जयकेमिदेव की जननी और काणूरगण-तित्रिणिगच्छ के बन्दलिके तीर्थाध्यक्ष भानुकीति सिद्धान्त की गृहस्थ शिष्या ने सेतुनामक स्थान में भव्य जिनालय निर्माण कराके, उसके लिए, ११५९ ई. में, स्वगुरु को भूमि आदि का प्रभूत दान दिया। णि ले. में उसकी धार्मिकता की बड़ी प्रशंसा करते हुए उसे 'अभिनव अत्तिमब्बे' कहा गया है। [प्रमुख. १७७; वैशिसं. iii. ३४९; एक. viii. १५९] अलुपेन्द्र- तुलुगदेश के जनधर्मावलम्बी अनुपवंशी नरेनों (११वीं-१४वीं शती 1.) की सामान्य उपाधि। शिल्पी, जिसने जैनमदिरों के पाषाणों से कट्टेबेपुर का हनुमान मदिर बनाया था। [टंक.] राष्ट्रकूट कृष्ण तृ. (९३९-६७ ई.) का एक शत्रु सामन्त, जिसे सम्राट के प्रधान सहायक जैन गंगनरेश मार सिंह ने पराभूत किवा था। [शिस i. ३८] ऐतिहासिक व्यक्तिकोष
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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