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________________ लावण्यसिंह का पुत्र और अमरचन्द्र का मित्र, जिसने बोलका के राज्यमन्त्री वस्तुपाल की प्रशंसा में, १२१९-२० ई० में, सुकृतसंकीर्तन काव्य रचा था । [टंक.; गुच. २] अरिहररात्र- विजयनगर नरेश दे. हरिहरराय । महा मण्डलेश्वर कुमार मरिहरराज सम्राट हरिहर डि. ( बुक्क द्वि.) का पुत्र था जिसका अपरनाम बुक्कराज था - १३८२ ई० के जिनमंदिर के लिए दिये अरिसिंह गये दान का लेख है । [ जैशिसं - ५६१; एवं. vii. १५ A. ] अरुणमणि ने १६१७ ई० में सं. विमलनाथपुराण की रचना की थी। [कंच. १९० ] अरुणमणि -- कवि, पंडित. नामान्तर लालमणि, अरुणरत्न, रक्तरस्न आदि, ने १६५९ ई० में, मुद्गल अवरंगसाहि (मुगल सम्राट औरंगज़ेब ) के राज्यकाल में, जहांनाबाद (दिल्ली) के पाश्र्व जिनालय में, अजितजिन चरित्र नामक संस्कृत काव्य की रचना की थी। वह ग्वालियरपट्ट के काष्ठात्री भट्टारक श्रुतकीर्ति के प्रशिष्य और बुधराघव के शिष्य कान्हरसिंह के पुत्र, या शिष्य थे । [ प्रमुख. २९५ ] अरुमुसिदेव - अपरनाम रक्कसगंग द्वि., रक्कसगंग प्र० का भतीजा, राजा बासव और कंचलदेवी का पुत्र, गावम्बरसि का पति, महिलारत्न चट्टलदेवी, सान्तर रानी बोरलदेवी और राजविद्याधर का पिता, जंन नरेश । ल. १०५० ई० । [ प्रमुख. १७४; भाइ २७५ ; मेज. १५९; शिसं . २१३, २४८ ] अमोल बोल- २००५ ई०, सभवतया राजराज चोल का एक जैन सामन्त, जो गुणवीर मुनि और गणिशेखर उपाध्याय का गृहस्थ शिष्य था । [जैशिसं. ॥ - १७१] अहमोलिदेव - तमिल भाषा मे भगवान अहंत का एक पर्यायवाची नाम | [जैशिसं. iv. २१९ - शि. ले. ११३४ ई० का है ] roat आहाल पोसूर निवासी धर्मात्मा श्रावक ने, जिनालय के लिए घृतदीपक, अक्षत आदि का दान किया - १४वीं शती ई० [जैशिसं. iv. ४०५] अदि मट्टारक- मूल संघ- सूरस्थगण चित्रकूटान्वय के भ. कनकनंदि के प्रशिष्य, भ. उत्तरासंग के शिष्य, भास्करनंदि एवं श्रीनंदि के सधर्मा, और ७४ ऐतिहासिक व्यक्तिकोष
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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