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________________ उन नार्य पन्डित पुरु जिन्हें पालुक्य सीमेवर दि. शासन- " काल में, १0७४ ई. में, बरसरवसति नामक जिनालय के लिए महामण्डलेश्वर लक्ष्मरस ने दान दिया था। [देसाई. १०७ १०८; जैशिसं. iv. १५८] महामन्दि सिवान्ति- मैसूर के १२.५ ई.के, मंदिसंघ-बलात्कारगण के माघमंदि सैद्धान्तिक के शि. ले. में उल्लिखित उनकी गुरुपरंपरा में समयनंदि भट्टारक के बाद और देवचन्द्र के पूर्व उल्लिखित महणवि सिडान्ति। [शिसं. iv. ३४२] अरेयने- हुमच्च के वीर सान्तर के जैन मन्त्री नकुलरस (१०५३ ई.) की धर्मात्मा जननी। [शिसं. iv.१३७] अरेयमारेय नायक-ने होयसल बल्लाल त के समय, ल. १३०० ई० में, एक्कोटि जिनालय के लिए विशाल सरोवर बनवाया था। [मेज.१०४] मरवगापिदि- तमिलदेश के आचार्य गुणसेनदेव (७वीं शती ई.) के एक धर्मा त्मा शिष्य। [शिसं. iv. ३३-३८] अकीति- १. यापनीयनन्दिसंघ-पुन्नागवृक्षमूलगण-श्रीकित्याचार्यान्वय के गुरु कुबिलाचार्य के अन्तेवासी विजयकीर्ति के शिष्य, जिन्हें कुमुंगिल नरेश चालुक्य विमलादित्य को शनिगृहपीड़ा से मुक्त करने के उपलक्ष्य में, उसके मामा अशेषगंगमंडलाधिराज चाकिराज की प्रार्थना पर राष्ट्रकट सम्राट गोविन्द त. प्रभूतवर्ष जगतुंग ने अपने ८१२ ई. के कदव ताम्रशासन द्वारा शिलाग्राम के जिनालय के लिए जालमंगल ग्राम दान किया था। [प्रमुख. ७७, १००; भाइ. २९८: जैशिसं. i-१२४; एई. iv] -दे. अरकीति व अरिकीति, शुद्धनाम अर्ककीति है। २. शाकटायन-व्याकरण के कर्ता शाकटायन पाल्यकीर्ति के गुरु या सधर्मा, संभव है कि नं.१ से अभिन्न हों। अर्ककोति नप- १३९८ ई. के शि. ले. में उल्लिखित एक राणा, जो संभवतया दिगम्बराचार्य अभयसूरि का भक्त था। [क्षिसं i-१.५] अनन्दि- पुण्यास्रवकथाकोशकार रामचन्द्र मुमुक्ष के परम्परागुरु, पचनन्दि के शिष्य, माधवनन्दि के गुरु, वसुनन्दि के प्रगुरु -वसुनधि के शिष्य श्रीनन्दि थे, प्रशिष्य केशवनन्दि, जिनके शिष्य रामचन्द्र मुमुल थे -ल. १२वीं शती ई.। ऐतिहासिक व्यक्तिकोष
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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