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________________ बरिष्टनेमि की यदुवंश शाखा में हुए, नारायष कृष्ण के तानात पाई।' महाभारतकालीन १. या बरिट्टनेमि पंडित, परसमयध्वंसक उपाधि, मलेगोल्ल के निवासी, श्रवणबेलगोल के एक प्राचीन यात्रा लेख में उल्लिखित । [शिसं . २९७] २. आचार्य, जिन्होंने, ल.७.०१० मे, कटवगिरिपर, दिण्डिक. राज नामक राजा और कम्पितादेवी की उपस्थिति में समाधिमरण किया था, इनके बनेक शिष्य थे। [जैशिसं. . १५२] ३. आचार्य, जो कर्डकोट्टर के निवासी थे, और तिरुमले के परवादिमल्ल के शिष्य थे, ने एक यक्षिप्रतिमा बनवाई बी-कास अनिश्चित। [शिसं. iti. ८३१] ४. अष्टोपवासि गुरु के शिष्य अरिट्टनेमि पेरियार (अरिष्टनेमि महान), एक प्राचीन तमिल लेख में उल्लिखित । [देसाई.५७, ५. गंगनरेश पृथ्वीपति प्र. (ल. ८५० ई.) के गुरु दिगम्बराचार्य, यह राजा बड़ा वीर पराक्रमी योदा पा, युद्ध में ही बीर गति पाई। संभवतया उसकी तथा उसकी रानी कम्पिला की उपस्थिति में आचार्य ने कटवा पर्वत पर समाधिमरण किया था -संभव है न. २ से अभिन्न हों। [प्रमुख. ७७] इ. पेरियकडि के अरिष्टनेमि मदारक, जिनके एक शिष्य को राष्ट्रकट कृष्ण द्वि. अकालवर्ष (८७८-९१४ ई.) के सामन्त विक्रमवरगुण ने दान दिया था। [प्रमुख. १०६] ७. अरिष्टनेमि भट्टारक, अपरनाम नेमिनाथ विद्य, जो श्री. देवताकल्प नामक मन्त्रशास्त्र के रचयिता हैं। वीरसेन के प्रशिष्य और गुणमेन के शिष्य थे। ल. ११०० ई.। ५ बरिट्रनेमि भटार, जिनके शिष्य गणन्दांगिकरट्रिगल के दान का ७वीं शती ई. के एक तमिल अभिलेख में उल्लेख हैं। [जैशिस. iv. २३] ९. तिरुप्पानमल के दिगम्बराचार्य अरिष्टनेमि जिनकी शिष्या ने परान्तकचोल के राज्यकाल में, ९४५६.में, जनहित के लिए एक कप बनवाया था। [शिसं. iv: ८२] ऐतिहासिक व्यक्तिकोष ७३
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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