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________________ के लिए ९६३ ई. में एक ग्राम आचार्य सोमदेवसूरि को दान किया था। इमी राजा के समय में, ९६६ ई. में, गंगनरेश मारसिंह ने पुलिगेरे के शंखतीर्थ पर गंगकन्दर्प जिनालय बनवा. कर उसके लिए देवगण के जयदेव पण्डित को भूमिदान दिया था। [प्रमुख. १८५-१८६; देसाई. १०२; भाइ. ३३३.३३४] मरिकेसरी- या हरिकेसरीदेव, नागरखंड का कदम्बवंशी जैन राजा, १०५५ ई.। प्रमुख. १८६, १२३.१२४; जैशिसं. ii. १८७; इए. iv, १ ए. १ पृ. २०३] हुमच्च के जैन नरेश नन्नि सान्तर की रानी और राय सान्तर की जननी सिरियादेवी का पिता, ल.१००० ई०। [प्रमुख.१७२] अरिकेसरी- १११५ ई० में जिस धर्मात्मा सामन्त नोलंब की प्रेरणा से कोल्हा. पुर के शिलाहार गण्डरादित्य ने दान दिये थे, उसका एक धर्मात्मा पूर्वज । [जैशिसं iv. १९२] मरिकेसरी असमसमान मारवर्मन- मदुरानरेश कुनपांड्य (७८३ ई.) का अपर नाम, जिसने शैवसंत तिस्तान संबंदर के प्रभाव में जैनों पर भीषण अत्याचार किय थे। [मेज. २७५-२७७] परिट्टनेमि- दे. अरिष्टनेमि । अरिष्ट्रोनेमि- मूतंकार, संभवतया जिसने, ल. ९०. ई० में, श्रवणबेल गोल के चन्द्रगिरि की भरतेश्वर मूत्ति का निर्माण किया था। [शिसं. i.२५, भू. १४] कुछ विद्वानो का अनुमान है कि गोम्मटेश बाहुबलि की विशाल मूत्ति (९८१ ई.) का शिल्पी भी कोई अरिट्टोनेमि या अरिष्ट नेमि था। [टंक.] परिवमन- सौराष्ट्र के वेलाकुल का एक राजा, जिसके एक क्षत्रिय कर्मचारी कामादि के पुत्र ही प्रसिद्ध श्वेताम्बराचार्य देवद्धिगणि क्षमाश्रमण (४५३.६६ ई.) थे। [टंक.] अरिमंडल मटार- दे. अभिमंडल भटार [मेज. २४४-४५] मरिदिगोज- राष्ट्रकूट इन्द्रराज त. (९१४.२२ ई.) के परम जैन दण्डनायक श्रीविजय का विरुद। [शिसं iv. ९७] अरिष्टनेमि- या नेमिनाथ, २२वें तीर्थकर, जन्मस्थान शौरिपुर (आगरा जिला, उ० प्र०), पिता समुद्र विजय, माता शिवादेवी, हरिवंश ७२ ऐतिहासिक व्यक्तिकोष
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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