SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१११७ ई.) की धर्मात्मा बननी। [प्रमुख.१४५ मेष.१२१; चिस. 1-२६४; एक.iv.८३] बरसिक हुमन्च के वीरदेव सान्तर (१०६२६०) को सास, उनकी वान. भोला धर्मात्मा रानी चागलदेवी की बननी, स्वयं भी बड़ी धर्मा स्मा महिला । [जैशिसं.१९८; एक.viliru; प्रमुख.१७३] मरहवास- चौधरी चीमा के पुत्र और चौधरी देवराण (१५१९ ई.) के चचा। [प्रमुख. २४४] भरहनाव दे. अर या अरनाष, १८वें तीर्थकर । मरिकीति- दे. अकीति। मरिकेसरी- विदर्भदेशस्थ अचलपुर नगर के अपने समकालीन जैन नरेश के विषय में श्वे. जयसिंहसूरि ने अपनी धर्मोपदेशमालावृत्ति (८५६ ई.) में लिखा है -'इस अचलपुर में दिगम्बर जैन माम्माय का भक्त अरिकेसरी नामक राजा राज्य करता है, जिसने अनेक महाप्रसाद निर्माण करा के उनमें तीर्थकर प्रतिमाएं प्रतिष्ठापित कराई हैं।' [प्रमुख. २२३] मरिकेसरी- वातापी के प्राचीन पश्चिमी चालुक्यों की एक शाखा पुलिगेरे (लक्ष्मेश्वर) प्रदेश पर शासन करती थी, दिग. जैनधर्मावलम्बी थी, अकलंकदेव की परम्परा के देवगण के गुरुषों की विशेष भक्त थी, गंगधारा, लेंबूपाटक (बेमुलबाड) और पोदन (बोदन) इन राजाओं के अन्य मुख्य नगर थे। इसवंश में अरिकेसरी नाम के तीन (या चार) राजाओं के होने का पता चलता है१. अरिकेसरी प्र.. युद्धमल प्र. का पुत्र एव उत्तराधिकारी, ल. ८०० ई०। २. अरिकेसरी द्वि., वंश का सातवां राजा था, बहिग प्र. का पौत्र और मारसिंह द्वि. का पुत्र था तथा महान कन्नड कवि आदि-पम्प (९४१ ई.)का प्रश्रयदाता था। इस राजा की पत्नी राष्ट्रकूट राजकुमारी लोकाम्बिका थी। उसका पुत्र एवं उत्तराधिकारी बहिग वि.पा, जिसके समय में उसके गुरु, देवसंघ के सोमदेवसूरि ने, उसकी राजधानी गंगधारा में ही, ९५९ ई. में, यशस्तिलकचम्पू की रचना की थी। ३. अरिकेसरी त. बहिम वि. का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था। उसने अपने पिता द्वारा राजधानी लेंबूपाटक में निर्मापित शुभधाम जिनालय ऐतिहासिक व्यक्तिकोष
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy