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________________ विमुक्तये । लि. ले. अन्तिम दो भाषायों के समय का है। [देसाई. १४२] १७. अमन्तवीर्य पंडित, जिनका उल्लेख 'प्रवचन-परीक्षा के कता दि. जैन गाह्मण पं. नेपिचन्द्र (१६वीं शती ई.) ने अपने एक पूर्वज के रूप में किया है और उन्हें 'पटवाद-विशारद' बताया है। [शोधांक-१६; प्रसं. १.१] १८. जयदेव भट्टारक के शिष्य, देशीगण के बनन्तवीर्यदेव जिनके प्रिय गृहस्थ शिष्य राय गोड ने आवित्तीयंकर की प्रतिमा प्रतिष्ठापित की थी। शायद इन्हीं के एक अन्य शिष्य ओबेयमसेट्टि ने एक अन्य प्रतिमा प्रतिष्ठापित की पी। [शिसं.iv.५४७,५६७, अनन्तवी -दे. अनन्तवीर्य न. ५- संभव है गृहस्थ पंडित बव्रती भावक अनन्तसेनदेव-सप्तमंगीतरंगिणी के कर्ता पं० विमलदास के गुरु, वीरग्राम निवासी, दिग. [टंक] अनन्तहंसनि-वे., दशकृष्टान्त-चरित्र (१५१३ ई.) के रचयिता । बन्नतामती-गन्ति-नविलूर संघ की तपस्विनी आयिका, जिन्होंने ल. ७००ई० में, बादशतप धारणकर तथा यथाविधि व्रतों का पालन करके धवणबेलगोल के कटवा पर्वत पर सुरलोक प्राप्त किया था। [शिसं. i-२८; एक. ii, ९०] अनपायबोल- दे. कुलोतुंग चोलदेव दि. (११५० ई.) -इसके समय में शेक्किसार ने तमिन के प्रसिद्ध पेरियपुराणम् की रचना की थी। [मेजे. २७४] मनलदेवी- सेनापति बाषडाह कटकराज की पत्नी और कवि भासड की जननी । [टंक] अनसतेन- या बंगसेन, अनुभूति के अनुसार उन्जन के राजा विक्रमादित्य के पुरोहित और बनाना सिद्धसेन दिवाकर के पिता । [टंक] ममानि -ती. महावीरकालीन एवं उनका भक्त श्रावस्ती का धनाधीन, बेतवन बिहार बनाने वाली दुखमक्त विधाता का श्वसुर। [प्रमुख. २३] ऐतिहासिक व्यक्तिोष
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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