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________________ अधिव १. वाटायम के माचार्य आर्यसेन के शिष्य एवं पट्टवर, कनकलेत के गुरु, जिनसेन एवं नरेन्द्रसेन के प्रमुह- विनसेन के शिष्य महापुराणकार मल्लिवेण (१०४७ ई०) वे और नरेन्द्रसेन के शिष्य नबसेन (१०४३ ई०) थे। मोम्मटसारादि ग्रन्थों के कल नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती (ल० ९५०-९९० ई०) इस मक्तिसेनाचार्य को गुरुतुल्य मानते थे और उनके लिए 'ऋद्धिप्राप्त', 'गणधर तुल्य' 'rorse' जैसे विशेषणों का प्रयोग करते थे । गगनरेश मारसिंह द्वि. गंगबज- मुतियगंग (९६१-७४ ई०) के गुरु भी यही अजितसेनाचार्य ने उन्हीं के निर्देशन में उक्त नरेश ने ९७४ ई० में बंकापुर में समाधिमरण किया था। महासेनापति महाराज चामुण्डराय के भी वह कुलगुरु थे वह स्वयं उनकी माता काललदेवी, भार्या अजितादेवी तथा पुत्र जिनदेव इन्हों आचार्य के गृहस्थ शिष्य थे। जननी की प्रेरणापर इन्हीं आचार्य के मार्गदर्शन में बीरवर चामुण्डराय ने श्रवणबेलगोलस्थ fasoftir की विशालकाय अप्रतिम गोम्मटेश बाहुबलि प्रतिमा का निर्माण कराया था और इन्हीं बाबा से ९८१ ई० में उसकी प्रतिष्ठा कराई थी। यह बक्तिसेन बड़े प्रभावक राजपुर एवं संगाचार्य थे। [शोषांक ४१, पृ० १९-२० ; जैशिसं iv १३०; मोम्मटसारजीवकाण्ड भाशापी० १९७८, जनरल एडिटोरियल पु० ५-१३] २. अजितसेन पंडितदेव 'वावीमसिंह' इविसंघ- नन्दगणअरुङ्गलान्वय के आचार्य कनकसेन वादिराज के प्रशिष्य बौर श्रीविजय ओडेयदेव के शिष्य एवं पट्टधर थे। प्रसिद्ध वाचार्य मदिरारि (१०२५ ई०) को भी वह गुरुतुल्य मानते थे । गुणसेन और कुमारसेन उनके सथ थे, तथा मल्लिवेण मलबारी बादि अनेक शिष्य-प्रशिष्य थे। श्रवणबेलगोल की ११२८ ई० की मल्लिवेण प्रशस्ति में इनकी सूरि सूरि प्रशंसा कीगई है। अन्य बीसियों थि० से० में इनका उल्लेख व ससम्मान स्मरण ऐतिहासिक व्यक्तिकोष १७
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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