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________________ अधिका [ भाइ. ६६-६९; प्रमुख १८-२० ] माथुरसंधी साध्वी आर्यिका, जिनकी शिष्या पद्मश्रीने ११७६६ में, उदयपुर के निकट पहेली के जिनमंदिर में जिनस्तम्भ निर्माणित किया था । अतित- १. मूलसंघी भ. धर्मभूषण के प्रशिष्य तथा भ देवेन्द्रकीर्ति के शिष्य, जिनने १५८४ ई० में उबलद (महाराष्ट्र) में नेमिनाथ प्रतिमा प्रतिष्ठित की थी । [कैच. ७२] युद्धयन्त्रों का अविष्कार किया । बड़ा युद्धप्रिय था । अन्त में श्रावक के व्रत भी धारण किये थे । ૪ [जैशिखं ४. २४२-२४३-२४४] २. मूलसंघी म. धर्मभूषण के प्रशिष्य और म. विशालकीर्ति के शिष्य, जिन्होंने १६४४ एवं १६५४ ई० में उखलद (महाराष्ट्र) में बिम्ब प्रतिष्ठाएं की थीं । [जैशिसं २६७-२६८ ] ३. नन्दिसंग - सरस्वती गच्छ बनास्कारगन के भ. धर्मभूषण की आम्नाय में मलवेड (माम्पसेट) पट्ट के भ. धर्मचन्द्र के शिष्य, जिन्होंने १६५४ ई० में कनकयांतुक जाति के दिग जैन सेठ चताहु सेठी एवं उसके परिवार के लिए, संभवतया बालापुर में, जिनबिम्ब प्रतिष्ठित की थी । ४. म. कुमुदचन्द्र के शिष्य और म. विशालकीर्ति (१६७० ई०) के गुरु- नागपुर प्रदेश | [जैसि iv पृ० ४०७ ] ५. उसी संघ गच्छ-गण के नागपुर पट्ट के भ. हेमकीर्ति के शिष्य तथा भ. रत्नकीति के गुरु जिन्होंने १५०० ई० में एक पार्श्व-प्रतिमा प्रतिष्ठित की थी। १७६५ व १७७५ के प्रतिमालेख भी इन्हीं के प्रतीत होते हैं । [सिस iv, पृ० ४१३-१५] ६. अजितकीर्ति प्र०, चारुकीति के शिष्य वीर शान्तिकीर्ति के गुरु, ल. १८०० ई० । ७. प्रतिकीति द्वि, उपरोक्त शान्तिकीति के शिष्य, जिन्होंने भाद्र कृ० चतुर्थी बुधवार १८०९ ई० को श्रवणबेलगोलस्थ ऐतिहासिक व्यक्तिकोष
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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