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________________ सापा और बालों के जीविपान, बस्तुपात एवं विभुषमपाल थे। प्रतिष्ठित प्रविका तीबंकर विद्यमान ही पी। [ए. एस.बाई. २१, पृ. ७४ वैक्षिसं. iii ३६०, ३६१] बबराब- बाबजयदेव, शाकंभरीका चौहान नरेश, गोपज का पिता म.११.१-१९.. [गुष. १११,१२९-१२] अनवरा- रणधीर का बिनधर्म पोषक चौहानगरेक, क. १९१०.३..। बाराव पाटी-हिन्दी दिन. न सुकवि, बामेर निवासी, सवाईजयसिंह के समय में,म. १७०.१०, विकी केनिवाबपरिषयशोधर चौपई, पारमित्रों की कवा, चरखा चोपई, काका बत्तीसी, जिनजी की रसोई, शिवरमपी विवाह, नमोकार शिवि, कई पूजाएं, बिनती परमादिसापियरचनाएं। मायराबबीमाल-दिव., जयपुर निवासी न. १९५..विषापहार, कल्याण मंदिर, एकीमाव स्तोत्रों तथा चतुर्दश गुणस्थान चर्चा की गय भाषा निकाचो मेवा पारा के परमारनरेश विन्ध्या का पूर्वप,संभवतया पिता; उसके. अनुव लमीवर्मा का पौष देवपाल, अर्जुनवर्मा के पापात, ल. १२१८९० में गद्दी पर बैठा था। पाल के ये प्रायः सब ही परमारनरेश विनय-सहिष्ण थे। [साइ १३४-१३५] सेनगण के बाबा पीरसेन के प्रतिष्य, पुर्णसेन के शिष्य और उदयसेन के सधर्मा। [प्र. २२७-२२८) अपवर्मा- पा बजयवर्मन, बनवासि का बिनधर्मी कदम नरेश (५६५-६०६६.).कृष्ण-ब हि. का उत्तराधिकारी, उसका स्वयं का उत्तराधिकारी मोनिधर्म था। [भाइ २५५] महावीरवालीन मगधनरेन पिक विमसार का पुत्र एवं उत्तराविकारी प्रतापी सम्राट अजातशत्रु (.पू. ५३५-५०३) अपरलाम कुणिक। ती. महावीर का भी भक्त वा बोर तथागत बुर का भी सम्मान करता था। उसने मगधराज्य का विस्तार करके उसे साम्राज्य पैसा बना दिया, पाटनि-दुर्ग का निर्माण और रणमूसल एवं महाशिलाकंटक से विध्वंसक ऐतिहासिक व्यक्तिकोष
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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