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________________ एन एलवराय- दे. एलवराय | या एल, एक राजा, जिसका कुष्टरोम शिरपुर (जि० बकोला) के अन्तरीक्ष पार्श्वनाथ जिनालय के कुंए के जल से स्नान करने सेलर हो गया था, ऐसा कहा जाता है । [ बसाइ २२७; अकोला गजेटियर ] एलवासुंड - जिसने दोणगामुण्ड के साथ, वातापी के पश्चिमी चालुक्य नरेश कीर्तिवर्म (राज्यान्त ५६७ ई०) के सामन्त, पाण्डीपुर के राजा मावति को सहमति से राजमान्य जिनेन्द्रभवन की पूजार्था के लिए परलूरगण के प्रभाचन्द्र गुरु को चावल आदि दान किये थे । [जैशिसं. ii. १०७; ईए. xi. १२० ] एलवाचार्य गुरु- कोण्डकुन्दान्वय के कुमारनन्दि भट्टारक के शिष्य और उन वर्षमान मुनि के गुरु जिन्हें, ८०७-८०८ ई० में, चामराजनगर ताम्रशासन द्वारा राष्ट्रकूट गोविन्द तु० जगतुंग के अनुज 'रणावलोक' कम्भराज ने अपने पुत्र शंकरगण को प्रार्थना पर गगराजधानी तालवननगर (तलकाड) को सुप्रसिद्ध श्री विजयबसदि के लिए बदनगुप्पे नामक ग्राम दान किया था। [ प्रमुख. ७७, १००; ; भाइ, २९८; जैशिसं. iv. ५४ ] - दे. एलाचार्य । एसाइरिय- दे. एलाचार्य । [ प्रवी.. १२३ ] एलाचार्य १५८ १. मूल संचाग्रणी कुन्दकुन्दाचार्य (६ ई० पू०-४४ ई०) का अपरनाम, जो तमिल भाषा के प्राचीन संगम साहित्य में अति प्रसिद्ध है - इन्होंने तमिलवेद रूपो विश्वविख्यात नीतिशास्त्र कुरलकाव्य को अपने शिष्य तिरुवल्लवर द्वारा मदुरा के संगम में प्रस्तुत कराया था। [ जैसो. १२१, १२६; प्रमुख. ६९; भाइ २३७; जैशिसं ॥ ५८५ मेजं. २४०-२४१] २. भवल- जयभवलकार स्वामि वीरसेन (ल० ७१०-७९० ई० ) के विद्यागुरु, जिनके सानिध्य में, चित्रकूटपुर (चित्तौड़ दुर्ग ) में स्वामी ने ल० ७४०-७५० ई० में, सिद्धान्त शास्त्र का अध्ययन किया था। [ जैसो. १०६, १८८; प्रवी. . १२३] ३. एलाचार्य या हेलाचार्य, ज्वालमालिनी मन्त्रशास्त्र के मूल बाविष्कर्ता, ल० ७०० ई० । वह आचार्य तमिलनाड के उत्तरी ऐतिहासिक व्यक्तिकोश
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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