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________________ बाट जिले के पोपुर ग्राम के निवासी-इसी का परका हेमयाम था। [देसाई. ४७, ४८, १७२; प्रवी. i. ९१] यह अविसंच के आचार्य। ४. एमाचार्य, या एलवाचावं, वर्षमानगुरू (८०८९०)* मुरु और कुमारनंदि के शिष्य। -दे. एलवाचार्य। ५. एलाचार्य, जिनके समाधिमरण के उपरान्त, ल. ९०० ई. में, उनके शिष्य कल्नेलेदेव ने, गंगनरेश एरेय (एरेयंग था एरे. पप्प) के समय में उनकी निषवा स्थापित की भी। [शिस. iv.७६; मेज. १७३] ६. सूरस्थगण के एलाचार्य, जिन्हें ९६२ ई० में गंगनरेश मार. सिंह लि. ने अपनी जननी कल्लम्बे द्वारा निर्धापित चिनालय के लिए ग्राम दान किया था। इनके गुरु रविनवि, गुरु रविचन्द्र जो स्वयं कल्नेसेदेव के शिष्य और प्रभाषन्द्र योगीश के प्रशिभ्य थे। [शिसं. iv. ८५; v. १७] ७.देशीगण-पुस्तकगच्छ के श्रीधरदेव के शिष्य एलाचार्य जिनके शिष्य वामनंदि और चन्द्रकीति थे, प्रशिष्य दिवाकरनंदि थे -दिवाकरनदि के शिष्य जयोति अपरनाम चान्द्रायणीदेव के, ल. ११.०६. के शि. ले. में उल्लिखित। [शिसं.. २४१; एक. iv. २८; मेजं. २४.] ८. एलाचार्य मलधारिदेव, जो पूर्णचन्द्र के शिष्य और दामनंदिके शिष्य श्रीधराचार्य के शिष्य थे, और जिनके शिष्य चन्द्रकोनि तथा प्रशिष्य वह दिवाकरनंदिसिदान्तदेव थे जिनकी शिष्या नायिका बेसम्बेगन्ति को १०९९६० में दान दिया गया था -२०७ से अभिन्न प्रतीत होते हैं। इन्हीं के शिष्य शुभचन्द्र ने १०९३६० में समाधिमरण किया था। पुलिस. ii. २३९, २३२] ९. १४वीं शती के एक लि. ले. में अमरकीति से पूर्ण उल्लिक्षित एनाचार्य। [शिसं. iv. ४.३] १०. श्रीधराचार्य के शिष्य, को संस्कृत में गणित संग्रह बन्ष के कर्ता है, ल. १.१.ई.। ऐतिहासिक व्यक्तिकोश
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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