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________________ सयों आदि के द्वार के लिए स्वबुक को ग्राम दान किये थे। [बाइ ३४२: प्रमुख. १३६: एक. . १४८; शिसं - ५३, एरेवबेगएरेंग्य ५६, १२४, १३०, १३७, १३८, १४४, ४९१, ४९२, ४९३४९५; iv. २१२, २४६, २७१, २८२, ३७६; मेजं. ७६,७७, १३८ ] ५. दान चिन्तामणि धर्मात्मा रानी चट्रियम्बरसि (चट्टले ) और राजा दशवर्मा का पुत्र, केशव का अग्रज, गंगनरेश मारसिह का दौहित्र और एक्कलभूप का भानबा, fareक्त राजकुमार११३९ ई० के लेस में उल्लिसित । [ जैशिसं. iii. ३१३; एक. viii. २३३] ६. कदम्बवंशी राजा हृदुव का प्रपौत्र, कूत का पौत्र, चिष्ण का पुत्र एरेयंग प्रथम । [ जैशिसं. iv. १६९-१७० ] ७. उपरोक्त एरेयंग प्र० का पोत्र मोर चिण्ण द्वि का पुत्र, जिसके राज्यकाल में, १०९६ ई० में देशीगण के आचार्य रविचन्द्र सैद्धान्त के उपदेश से माचवेगन्ति द्वारा जिनालय के लिए भूमिदान दिया गया था। [ जैशिसं. iv. १६९-१७० ] एरेयंनमय्य -- सर्वाधिकारी-सेनापति दंडनायक, जो होयसल नरसिंह प्र० के सेनापति ईश्वरभूप (११६० ई०) का पिता था । १४६-१४७; प्रमुख. १५३] दे. एलेवबेडंग । [मेजं. वातापी के पश्चिमी चालुक्य वंश के रणपराक्रमाङ्क महाराज (संभवतया वंश संस्थापक जयमिह प्रथम का पुत्र रणराग) का पुत्र और सत्याश्रय का पिता । भुजगेन्द्रान्वयो सेन्द्रवंशी राजा कुन्दशक्ति के पुत्र दुर्गशक्ति द्वारा लक्ष्मेश्वर के शंखजिनेन्द्रचैत्यालय के दान शासन में उल्लिखित, ल० छठी शती ई० । ये सेन्द्र राजे चालुक्यों के सामन्त थे । [जैशिसं. ii. १०९; इंए. vii. ३८] एप्परस पेमंड गंगनरेश ने, न० ९०० ई० में पेर्मनडि-पाषाण-वसदि के लिए कोमारसेन भटार को विविध दानादि दिये थे। संभवतथा एरेयंग (न० ३) से अभिन्न है, लेख उसके राज्यप्राप्ति से पूर्व कुमार काल का प्रतीत होता है। [जैशिस ii. १६८; एक. iii. १४७; मे. ९५] ऐतिहासिक व्यक्तिकोश १५७
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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