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________________ इलमपूर्णर-- तोलकप्पियन नामक प्राचीन तमिल व्याकरण का प्रथम टीकाकार, तमिल जैन विद्वान । इमोडल या इलङ्गोवडिगल, बज्जी के चेरनरेश चेरलावन के पुत्र, राजा गुंतवन के अनुज, मणिमेक्कलह के कर्त्ता बौद्धकवि कुलafoneशासन के मित्र और प्रसिद्ध प्राचीन तमिल जैन महाकाव्य शिलपदिकारम् के रचयिता जैन राजकुमार - अंततः जैन मुनि हो गये थे, समय ल० १५० ई० । इसहल- अपरमाम मंदिरं आशिरियन ने, ९वीं शती ई० में, पांड्यनरेश अबपिशेखर श्रीवल्लभ के राज्यकाल में सित्तनबासल (पुदुकोट्टे, मद्रास) के अहंन मंदिर के अतरमण्डप का जीर्णोद्वार और बाह्यमंडप का निर्माण कराया था । [जैशिस. iv. ६२] महाकवि स्वयंभू (ल० ८०० ई०) द्वारा उल्लिखित प्राकृत भाषा के पूर्ववर्ती पुरातन कवि । [ जंसाइ ३८५] इंगरसओडेय-- हाइबलिय राज्य के शासक संगिराय के पुत्र एवं उत्तराधिकारी, जिनके समय में, १४५० ई० में, बैदूर की पार्श्वनाथ बसति के लिए अनेक दान दिये गये थे । [ जंशिसं. iv . ४४१ ] - शायद यह इन्दगरम का पितामह और सांगिराय का पिता इंद्र ही था दे. इन्दगरस । दे. इन्द्र रक्षित । इसंगमन इंदरति ई--- १२६ होय्सल नरेश वीर बल्लाल द्वि. (११७३-१२२० ई०) का प्रसिद्ध सन्धिविग्रहिक मंत्री । वह तथा उसकी साध्वी भार्या सोमलदेवी ( या सोवलदेवी ) परम जिनभक्त, धर्मात्मा एवं दान शील थे। इस दम्पति ने १२०५ ई० में गोग्गनामक स्थान में वीरभद्र नामका अति सुन्दर जिनालय बनवाया था, जो पूरे बेलगबसिना में अद्वितीय था और १२०७ ई० में उसके लिए स्वगुरू वासुपूज्य देवको अनेक दान दिये थे, और गक निर्धन ऐतिहासिक व्यक्तिकोश
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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