SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कन्या का विवाह भी कराया था। [मुख.. १११.१२ बक्षिसं.ii. १, ५५, ४१६] श्वेताम्बर मुनि श्रीमविजयगण को दक्षिण भारत की तोयाना के समय (ल. १६५३६०) में बीजापुर का सुल्तान सिकन्दर बादिलशाह को बली आदिलशाह वि. का पुत्र एवं उत्तराधिकारी पा। [जैसाइ. २३७; भाइ.४४] जिनधर्म का अनुपायो विवर्मनरेश ईल, अपरनाम ऐल (१०८५ ई.) अनाचार्य ममयदेवसूरि का भक्त था, एलउर (एलोरा) उसकी राजधानी पी, जिसकी प्रतिनि उसके बहुत समयपूर्व से ही एक महत्वपूर्ण जैन तीर्थक्षेत्र के रूप में रहती आई थी। [प्रमुख २२३] सिरि, पंडित- देवगढ़ (वि. समितपुर, उ०प्र०) के मंदिर न. १६ के शि. ले. में पं. लक्षमनंदि और पं० श्रीचन्द्र के साथ उल्लिखित पं. ईसनंदि। [शिसं.v-पृ. ११८] शिानकवि- पुष्पवंत के महापुराण (९६५ ई.) में अपभ्रन्थ के एक पुरातन कवि के रूप में बाण, द्रोण एवं श्रीहर्ष के साथ उल्लिवित-स्वयं बाण ने भी हर्षचरित में भाषाकवि ईशान का उल्लेख किया है। [साइ. ३२५, ३७१] ईमान योषि- कित्तरसंव के आचार्य योगिराज ईशान ने, ल. ७०० ई. में श्रवणबेलगोलस्य चन्द्रगिरि पर पंचपरमेष्ठि की भक्ति पूर्वक समाधिमरण किया था। [शिसं . १९४] चालुक्य सम्राट विक्रमादित्य षष्ठ के समय के १०८१ ई० के सम्मेश्वर शि. ले, में, पुलिगेरे के महासामन्त एरेमय्य के मन्धु दोण बारा सेनवण के आचार्य नरेन्द्रसेन लि. को दिये गये दान में सहयोगी बंदराज कप के द्वितीयपुत्र, और इन्दप, राजि, कलिदेव, भाषिनाव, शान्ति एवं पार के भ्राता धर्मात्मा श्रावक [बंशिसं. iv. १६५] ईश्वर हम पार्षगग्य- सांस्यकारिका के कर्ता, जिनका उल्लेख जनेन्द्र एवं साकटायन जैसे जैन व्याकरणों में हमा है -समय अनुमानत: १ली से पी शती. [साह. २१८-१९) ऐतिहासिक व्यक्तिकोम
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy